
पुलवामा में शहीद भगीरथ के बाद जिंदगी ठहर सी गई है, कोई सुध नही लेता- वीरांगना रंजना देवी
पुलवामा में शहीद भगीरथ के बाद जिंदगी ठहर सी गई है, कोई सुध नही लेता- वीरांगना रंजना देवी
राजाखेड़ा. विगत 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आत्मघाती हमले में जैतपुर के भागीरथ के गांव में तो कुछ नहीं बदला, लेकिन घर में बहुत कुछ बदल सा गया है। जहां पहले हर समय भागीरथ के आने का इंतजार सा लगा रहता था, अब वह खत्म हो चुका है। अकेले में बस वीरांगना की सिसकियां कमरे की दीवारों में दब के रह जाती हैं।
भागीरथ के तीन मासूम बच्चों को तो अभी यह भी नहीं मालूम कि इनके पिता का साया उनके सिर से उठ चुका है।
सबसे छोटी बेटी कामिनी तो अभी मात्र एक वर्ष दो माह की है, जिसका जन्म ही भगीरथ की शहादत के बाद हुआ था और वो जन्म से पहले ही अपने पिता को खो चुकी थी।
50 लाख देकर भूल गई सरकार
रंजना देवी ने बताया कि सरकार ने तो 50 लाख देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। भगीरथ की प्रतिमा की कीमत भी आधी उन्हें अपने पास से खर्च करनी पड़ी थी। जबकि उनकी शहादत को अमर रखने के लिए किसी संस्था का नामकरण आज तक उनके नाम पर नहीं हो पाया है। हालांकि बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी राजाखेड़ा के एक निजी स्कूल ने उठा रखी है, जो अपने वायदे को जरूर पूरा कर रहे हैं।
शहादत दिवस पर ही आती है याद
रंजना देवी को इस बात की भी पीड़ा है कि अंतिम संस्कार के समय आए सरकार के सदस्य और प्रतिनिधि अधिकारी, जो हर समय साथ रहने का वायदा करते थे, कभी पूछने तक नहीं आए की अब तुम और तुम्हारा परिवार कैसा है। पिछले वर्ष शहादत दिवस पर उनकी कंपनी की सैन्य टुकड़ी आई थी तो उनके साथ जरूर अधिकारी आ गए थे। बाकी दिनों किसी को याद नहीं रहती की शहीद का भी परिवार यहां रहता है। शहादत के दिवस ही सबको याद आती है। हां, क्षेत्र के युवाओं में जरूर भागीरथ अमर है। जिनकी शहादत के बाद बड़ी संख्या में युवा सेना में जाने के लिए कड़ी तैयारियो में जुट गए है। भर्ती होकर भगीरथ का बदला लेना चाहते हैं।
पापा ड्यूटी पर गए हैंं, छुट्टी मिलेगी तब आएंगे
शहीद के तीनों बच्चे बड़ा विनय 6 वर्ष, शिवानी 4 वर्ष और सबसे छोटी कामिनी एक वर्ष दो माह इतने मासूम है कि अभी उन्हें शहादत का मतलब तक नहीं मालूम। बस सांझ ढले जब मां अकेली दिखती है तो पूछते हैं हमारे पापा कब आएंगे और भीगी आंखों से बस रंजना यही कह कर उन्हें दिलासा दे देती है कि बेटा छुट्टी मिलते ही पापा जल्दी आएंगे।
मेरा विनय लेगा बदला
रंजना ने बताया कि बड़े बेटे विनय को वे सेना में भेजना चाहती हैंं। जिससे वो भगीरथ का बदला ले सके और उनकी छाती ठंडी हो सके। इसके लिए वे बच्चों को लोरियों की जगह पिता और सेना की वीरता की कहानियां सुनाती है। जिससे वे भी पिता की वीरता की परंपरा को ओर आगे ले जा सकें।
Published on:
15 Feb 2021 11:12 am
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