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छीन गई रोजी-रोटी…अब क्या करते… -पैदल चलकर पहुंचे बड़ी संख्या मजदूर परिवार

धौलपुर. साहब बहुत भूखे है...मजदूर है, कई दिनों से पैदल ही चल रहे है...काम बंद होने के कारण जेब में अब फूटी-कौड़ी भी नहीं है...हर किसी की बस यहीं गुहार नजर आ रही थी रविवार को हजारों किलोमीटर का सफर तय करके धौलपुर तक पहुंचे मजदूर परिवारों की।

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 Stripped off livelihood ... now what would you do ... - Large number of laborer families arrived on foot

छीन गई रोजी-रोटी...अब क्या करते... -पैदल चलकर पहुंचे बड़ी संख्या मजदूर परिवार

छीन गई रोजी-रोटी...अब क्या करते...
-पैदल चलकर पहुंचे बड़ी संख्या मजदूर परिवार
-बेबस नजर आए धौलपुर प्रशासन के इंतजाम
-हाइवे के 25 किलोमीटर का सफर में खाना ना पानी
धौलपुर. साहब बहुत भूखे है...मजदूर है, कई दिनों से पैदल ही चल रहे है...काम बंद होने के कारण जेब में अब फूटी-कौड़ी भी नहीं है...हर किसी की बस यहीं गुहार नजर आ रही थी रविवार को हजारों किलोमीटर का सफर तय करके धौलपुर तक पहुंचे मजदूर परिवारों की। सूर्य का तेज प्रकोप भी इन मजदूर परिवारों की हिम्मत को तोड़ रहा है, पर क्या करें इनके पास दूसरा कोई भी रास्ता भी नहीं है। मजदूरों के कई साथी तो पहले ही निकल चुके है और रहे-बचे समूह में निकल पड़े है, ताकि रास्ते में कोई मुसीबत आए तो कम से कम साथ देने वाले तो कोई हो। हैदराबाद और रोहतक से चलकर समूह में धौलपुर तक पहुंचे मजदूर समूह में हर किसी के हाथों और सिर पर सामान को झोला और गोदी में बच्चें प्रशासन की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर रहे है।
खुद व खुद मजबूर हो गया हौंसला
रोहतक से अपने गांव झांसी जाने के लिए धौलपुर पहुंची लीना का कहना है कि उनका परिवार मजदूरी का काम करता है, काम बंद है और खाने-पीने की समस्या बढ़ती जा रही है, ऐसे में अपने परिवार की जिंदगी बचाने के लिए पूरे परिवार के साथ गांव पहुंचने का निर्णय ले लिया है। साथ रहने वालों की भी यहीं समस्या थी तो सभी ने एकसाथ अपने-अपने गांव पहुंचने की कदम बढ़ा लिए। लीना ने बताया कि एक बार कदम बाहर निकले तो सभी लोगों का हौंसला खुद व खुद मजबूत होता ही चला गया। मजदूर समूह में पहुंचे दिनेश ने बताया कि कई दिनों से भूखे है, पर मन में ठान लिया तो किसी ने भी हार नहीं मानी। कोरोना ने सभी के सपने तोड़ दिए है, ऐसे में कोई भी अपने गांव-घर से दूर मरना नहीं चाहता है। दिनेश ने बताया कि अगर वह जहां काम करते है वहीं रहते तो उनका परिवार भूख से मर जाता। जुड़ी हुई जितनी भी पूंजी थी वह अब खत्म हो गई। हर बार लॉक डाउन खुलने की उम्मीद भी लगाई थी, लेकिन लॉक डाउन तो बढ़ता ही गया। ऐसे में सभी मजदूरों बेरोजगार बैठे हुए थे, सभी एकसाथ अपने गांव पहुंचने का मानस बना लिया।
हर किसी ने लूटा हमें...
हैदराबाद से चलकर रविवार सुबह धौलपुर पहुंचे अमृतलाल और महेन्द्र ने बताया कि जिंदगी से बड़ी कोई कमाई नहीं है। हम तो कमाई के लिए अपना घर छोड़कर हैदराबाद गए थे, लेकिन कोरोना ने हमारी तमाम सपने ढेर कर दिए। अमृतलाल ने बताया कि फैक्ट्री बंद हो गई, घर में जो राशन पड़ा था वे भी खत्म हो गया। अब ऐसे में क्या करते। घर पहुंचने के लिए निकल पड़े। रास्ते में पुलिस की सख्ती के बीच जिन-जिन साधनों का सहारा लिया, उन्होंने मनमान किराया वसूला, इतना नहीं खाने-पीने की चीजे भी के दाम भी अधिक लिए गए। ऐसे में अब धौलपुर तक पहुंच कर अब रास्ता लम्बा नहीं है, जल्द ही अपने गांव हिण्डोन पहुंच जाएंगे। करौली जाने को धौलपुर पहुंचे महेन्द्र ने बताया कि पता नहीं कि काम कब तक मिलेगा, बस यहीं सोच कर घर चलने की ठान कर निकला आया, रास्ते में सारे पैसे खत्म हो गए अब तक बस घर पहुंच जाएं इसी बात की जल्द ही है।
छोटे बच्चे व महिलाएं परेशान
यहां धौलपुर में रविवार को विभिन्न स्थानों से पहुंचे मजदूर वर्ग के लोगों में छोटे बच्चों व महिलाओं की संख्या अधिक है। अपने माता-पिता का हौंसला बढ़ाने के लिए नन्हें मासूम भी पैदल चल पड़े है। पलायन करने वालों में हर किसी के चेहरे पर घर और गांव तक पहुंचने की ललक साफ-साफ नजर आ रही थी। कड़क धूप में हर किसी के कंधो और सिर पर सामान को झोला और गोदी नन्हें मासूमों को देख कर हर देखने वाले शख्स का कलेजा भी पसीज रहा था। लेकिन कोई भी इनके लिए कुछ भी कर पाने में अपने में असमर्थ नजर आ रहा है। लोगों की परेशानियों को देखकर धौलपुर पुलिस का दर्द भी साफ झलक रहा था, कई स्थानों पर तैनात पुलिसकर्मियों ने स्वयं की जेब से केले खरीद कर लोगों को उपलब्ध कराएं।
नजर नहीं आए प्रशासन के राहत शिविर
कहने को कोरोना को लेकर जिला प्रशासन की ओर से तमाम व्यवस्थाएं दुरुस्त होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन असल हकीकत कुछ और ही है। पलायन कर रहे लोगों को रास्ते में कहीं भी प्रशासन के राहत शिविर नजर नहीं आ रहे है। ऐसे में लोगों को खाने-पीने के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक की करीब 25 किलोमीटर की सीमा में जिला प्रशासन की ओर से ना तो मजदूर राहगीरों के लिए ना तो खाने की व्यवस्था की गई और ना ही पीने के लिए कोई पानी का इंतजाम। लोगों को एक राज्य की सीमा से दूसरे राज्य की सीमा तक पहुंचाने के लिए किसी भी प्रकार के वाहन व छाया की सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई गई थी। ऐसे में सैकड़ों लोग भूख और प्यास को लेकर धौलपुर की सीमा को पार कर गए।