
इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ बाड़ी के अजय गर्ग का नाम
इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ बाड़ी के अजय गर्ग का नाम
- गांधी की 12 पीढिय़ों पर बनाए वंश वृक्ष से मिली अजय को यह उपलब्धि
बाड़ी. देश के विख्यात डाक टिकट संग्रहकर्ता बाड़ी निवासी अजय गर्ग का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। अजय को यह उपलब्धि उनके द्वारा बनाए गए महात्मा गांधी के वंश वृक्ष को लेकर दी गई है। जिसमें उन्होंने गांधी की 12 पीढिय़ों का उल्लेख वृक्ष के माध्यम से किया है। ऐसे में उनको नामित करते हुए प्रशस्ति पत्र और अन्य सामग्री प्रदान की गई है।
अजय गर्ग पिछले 24 वर्षों से डाक टिकट एवं मुद्रा का संग्रह कर रहे हैं। जिसमें भी वह विशेष रूप से पूरे विश्व भर में महात्मा गांधी पर जारी की गई डाक टिकटों का संग्रह करते हैं। वर्तमान में उनके पास 155 देशों की महात्मा गांधी पर जारी डाक टिकट है। वर्ष 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्होंने महात्मा गांधी के परिवार का 12 पीढिय़ों का वंश वृक्ष बनाकर तैयार किया। जिसने उनको आज इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में जगह मिली है। जन्म से दिव्यांग अजय गर्ग कस्बे के छपेटी पाड़ा निवासी व्यापारी जगदीश प्रसाद गर्ग के पुत्र हैं। उन्होंने अपने बुलंद हौसलों से दिव्यांगता को बौना साबित करते हुए डाक टिकिट संग्रह में कई उपलब्धियां हासिल की है। इण्डिया बुक ऑफ रिकॉड्र्स में अजय का नाम दर्ज होने पर बाड़ी विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा, जिला अग्रवाल महा समिति अध्यक्ष मुकेश सिंघल, अग्रवाल समाज बाड़ी अध्यक्ष मुन्नालाल मंगल, गौशाला अध्यक्ष सुनील गर्ग, तुलसीवन मुक्तिधाम के अध्यक्ष मनोज मोदी, अपना घर के अध्यक्ष विष्णु मेहरे, भारत विकास परिषद अध्यक्ष प्रमोद गर्ग, निजी विद्यालय संगठन के वीरेंद्र दीक्षित, जन चेतना समिति के अशोक बंसल के साथ अन्य लोगों ने उनको बधाई दी है।
इनका कहना है
एक पिता को यदि उसके पुत्र के नाम से पहचाना जाए, इससे भी बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है। शुरुआती दिनों में मैं कुछ ज्यादा समझता नहीं था कि यह क्या कर रहा है, परंतु जब अखबारों और टीवी में इसका फोटो आने लगे तो मुझे लगा कि शायद कोई बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। समाज, बाड़ी का और अपने परिवार का नाम रोशन कर रहा है।
जगदीश प्रसाद गर्ग, अजय के पिता
इनका कहना है
अजय जन्म के 6 माह बाद से पोलियो से ग्रस्त हो गया। हमने जगह-जगह उसका इलाज कराया, मगर वह पूर्णता सही नहीं हो पाया। मैं सोचती थी कि है अपना जीवन कैसे गुजारेगा, परंतु आज उसने अपने इस शौक की बदौलत पोलियो का नामो निशान अपनी जिंदगी में से मिटा दिया और मेरे सारे दुखों को भुला दिया।
रमा देवी गर्ग, अजय की माता
जब मेरी इनसे सगाई हुई, तब मेरे पिताजी ने मुझे बताया कि अजय किसी चीज का संग्रह करते हैं, तब मैं नहीं जानती थी, परंतु जब शादी होकर आई, तब मैंने इनके संग्रह को देखा तो धीरे धीरे मेरी भी रुचि इसमे होने लगी और जब यह सुर्खियों में आने लगे तो मैं भी बहुत प्रफुल्लित होती, मुझे गर्व है कि यह मेरे पति हैं।
अंजलि गर्ग, पत्नी।
इनका कहना है
मैं और अजय गर्ग बचपन के दोस्त है। शुरू से ही अजय को कुछ ना कुछ अलग करने की चाहत रहती थी। मगर जयपुर पढ़ाई के दौरान इसको डाक टिकट संग्रह का शौक लगा। उसके बाद इसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अरुण मंगल, एडवोकेट, बचपन के दोस्त
Published on:
10 Jul 2021 06:16 pm
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