बच्चों में बचपन से ही डालें ये आदतें कभी नहीं होंगे बीमार
छोटे बच्चों में आजकल मोटापा, टाइप टू-डायबिटीज, अस्थमा, आंख व हृदय संबंधी रोग, थकान और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं आमतौर पर देखने को मिल रही हैं।

बच्चों की सेहत उचित खानपान, नियमित व्यायाम, परिवार के दुलार और माता-पिता की सही देखभाल से ही संभव है। इसलिए उनकी परवरिश में अभिभावक इन चार बातों का विशेष खयाल रखें।
छोटे बच्चों में आजकल मोटापा, टाइप टू-डायबिटीज, अस्थमा, आंख व हृदय संबंधी रोग, थकान और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं आमतौर पर देखने को मिल रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये समस्याएं बच्चों की खानपान की गलत आदतों का नतीजा हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में भी मोटापा बढ़ने का कारण बाजार में आसानी से उपलब्ध रेडीमेड खाद्य पदार्थों को बताया गया है। आइए जानते हैं इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में-
प्रमुख वजह -
आजकल बच्चों को घर में बने खाने की बजाय बाहर के जंक फूड, आइसक्रीम और चॉकलेट आदि ज्यादा पसंद आते हैं। रोजाना के खानपान से जितनी कैलोरी ली जा रही है, उसे शरीर खर्च नहीं पा रहा है और बच्चों को कम उम्र में ही रोग घेरने लगे हैं।
दूसरा कारण आजकल बच्चों में शारीरिक गतिविधियों का अभाव है। मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप और टीवी की लत ने बच्चों को खेल के मैदान से दूर कर दिया है। आउटडोर गेम्स में उनकी कोई रुचि नहीं जबकि स्मार्टफोन पर घंटो खेलना उन्हें बेहद पसंद आता है।
उम्र के हिसाब से क्या और कैसे खिलाएं -
नवजात से 1 वर्ष तक : इस उम्र में बच्चे का विकास काफी तेजी से होता है। ऐसे में छह माह तक तो बच्चे को मां का दूध ही देना चाहिए। इसके बाद उसे दाल का पानी, दलिया और जूस आदि देना चाहिए।
1-2 वर्ष : इसमें बच्चे के विकास की दर 0-1 साल की तुलना में कम होती है। ऐसे में बच्चे के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। बच्चा जितना खाए उतना ही खिलाना चाहिए। बच्चे को दूध, केला, दलिया व साबूदाने की खीर आदि दे सकते हैं।
2-5 वर्ष : इस उम्र में बच्चा जो खाना चाहता है और जितना खाना चाहता है उससे 30 प्रतिशत तक अधिक खिलाएं। दिन में तीन बार संपूर्ण आहार जैसे खिचड़ी, सूजी का हलवा, हरी सब्जियां, दाल व चावल आदि दें और दो बार हल्का भोजन जैसे फल व फलों का जूस, केला और साबूदाने की खीर आदि खिला सकते हैं।
5-10 वर्ष : उम्र के इस पड़ाव में बच्चों को कैल्शियम की ज्यादा जरूरत होती है। तीन बार (नाश्ता, दोपहर का खाना व रात का खाना) संपूर्ण आहार व दो बार हल्का भोजन दें। डाइट में दूध, चीज, फल, सूप, जूस, हरी सब्जियां, पनीर, दही व छाछ आदि को शामिल करें।
10-15 वर्ष : इस उम्र में बच्चों का काफी तेजी से विकास होता है। साथ ही उनमें खून की कमी होने का खतरा बना रहता है इसलिए उनके भोजन में आयरन, हाई कैलोरी व प्रोटीनयुक्त चीजों को शामिल करें। ऐसे में पालक, चुकंदर, सेब, दालें, पनीर, छाछ, दही, दूध, जूस व अंकुरित अनाज लाभकारी होते हैं।
साथ में समय बिताएं -
बच्चों के साथ अधिक से अधिक क्वालिटी टाइम बिताएं। उन्हें सामने बैठकर खाना खिलाएं।
आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित करें -
माता-पिता बच्चे के टीवी, लैपटॉप या कम्प्यूटर के इस्तेमाल का समय तय करें। बच्चों को खेल-कूद में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। साथ ही समय मिलने पर खुद भी उनके साथ खेलें। खानपान व व्यायाम के अलावा माता-पिता का सपोर्ट भी जरूरी होता है इसलिए रोजाना बच्चे से उसके स्कूल व दोस्तों आदि के बारे में बात करें। बच्चों से दोस्त जैसा व्यवहार रखें ताकि वे अपनी परेशानी आपको खुलकर बता सकें।
माता-पिता रखें ध्यान -
बच्चों को किसी भी तरह की आदत 2-6 वर्ष के बीच लगती है। इस बीच माता-पिता बच्चों को जो कुछ भी खिलाते हैं उसका स्वाद उन्हें जीवनभर भाता है। बचपन से ही हरी सब्जियां, फल, दूध व अन्य प्रकार की पौष्टिक चीजें खाने की आदत डालें।
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