
More than 50 thousand laborers are migrating for wages, not getting work even for 100 days
डिंडोरी. जिले में मजदूरों को मजदूरी मिलने का एक मात्र माध्यम मनरेगा योजना है। वहीं वर्तमान में यह योजना मजदूरों को काम देने से ज्यादा विभागीय अमले और अधिकारियों की जेब मोटी करने के काम आ रही है। क्षेत्र में मनरेगा से वर्ष 2022-2023 में 1 लाख 97 हजार जॉब कार्ड धारियों में से मात्र 13000 को ही 100 दिन का रोजगार मिल पाया। वहीं मांग पर आधारित मनरेगा में 1 लाख 63 हजार लोगों ने काम की मांग की लेकिन इन्हें पूरे 100 दिन का काम नहीं मिल सका। जिसकी वजह से जिले को मनरेगा योजना के तहत कीरब 200 करोड़ रुपए नहीं मिल पाया। जो मजदूर काम भी किया उनका मजदूरी भुगतान किन्ही काराणों से नहीं हो पाता। लोगों का मानना है कि श्रमिकों को 100 की पूरी मजदूरी व भुगतान समय पर हो तो पलायन काफी हद तक कम हो सकता है। जिले की विडम्बना है कि 50 हजार से अधिक मजदूरी के लिए पलायन करते हैं। यहां से नाबालिग बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी पलायन को मजबूर हैं। वहीं कई ऐसे मामले हैं जहां बाहर गए मजदूरों को वापस आने के लिए पैसे तक नहीं दिए जाते।
जिम्मेदार कौन
जिले में मजदूरों का हाल अन्य जिले की तुलना में काफी खराब है। 150 रुपए से लेकर अधिकतम 200 रुपए मजदूरी और वह भी भरोसा नहीं कि रोज काम मिल जाए। मनरेगा में 100 दिन और वन्य ग्रामों में 150 दिन की गारंटी जरूर है लेकिन हर वर्ष जिले का मनरेगा फण्ड लेप्स हो जाता है। लेकिन ऐसी स्थिति हर साल निर्मित होने के बावजूद जिला प्रशासन इस ओर गंभीर नहीं है। बीते वर्ष अमृत सरोवर और चैक डैम निर्माण हुए जिनमें मजदूरों से ज्यादा मशीनों से काम किया गया। जबकि योजना मजदूरों के लिए आई और फायदा मजदूरों के बदले मशीनरी को मिल रहा है। इसलिए लोग मनरेगा योजना में दिलचस्पी ना दिखाकर शहरों की ओर काम ढूंढने निकल जाते हैं।
Published on:
02 May 2023 01:39 pm
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