स्पाइनल स्टेनोसिस में हमारी रीढ़ की हड्डी में मौजूद खुले स्थान बंद होने लगते है जिससे स्पाइनल कॉर्ड और नसों पर दबाव पड़ता है। ज्यादातर मामलों में स्पाइन का सिकुड़ना, स्टेनोसिस होने के कारण ही होता है जिससे नर्व रूट दबने से पैरों में दर्द, थकान, अकड़न व झनझनाहट महसूस होने लगती है।
इसका इलाज मुश्किल हो सकता है क्योंकि इस तरह के लक्षण किसी अन्य कारण से भी हो सकते हैं। जिन लोगों को स्टेनोसिस हो यह जरूरी नहीं की उन्हें पहले कभी पीठ में दर्द हो या कभी किसी तरह की चोट लगी हो। स्पाइनल स्टेनोसिस में अचानक पीठदर्द होता है जो आराम करने पर चला जाता है। अगर रोग अधिक न बढ़ा हो तो सर्जरी से उपचार संभव है। इसके लिए जरूरी है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहा जाए क्योंकि इससे रोग जल्दी ठीक होता है। छोटे-छोटे बदलाव जैसे स्ट्रेट जैकेटेड कुर्सी की जगह झुकने वाली चेयर से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
एपिडरल इंजेक्शन से मरीजों को ठीक किया जा सकता है। जिन लोगों को सर्जरी करानी पड़ती है उनके जल्दी ठीक होने में भी यह इंजेक्शन मददगार होता है। जब सभी प्रयास विफल हो जाते हैं तो सर्जरी ही विकल्प होती है। हालांकि सर्जरी से पहले मरीज के शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखना जरूरी होता है। फिर डॉक्टर को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह क्षतिग्रस्त नब्ज को पहचानकर उसका उपचार करे। इलाज करते समय पूरी सावधानी बरती जानी चाहिए कि किसी और नस को नुकसान न पहुंचे।