
Diphtheria symptoms
Diphtheria symptoms : डिप्थीरिया, जिसे आम बोलचाल में गलधोंटू (Diphtheria) कहा जाता है, एक गंभीर संक्रामक रोग है जो विशेष रूप से 3 से 10 वर्ष के बच्चों को प्रभावित करता है। यह रोग कोरिनीबेक्टीरियम डिफ्थेरी (Diphtheria symptoms) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है और इसके लक्षण मुख्यतः गले, नाक में दिखाई देते हैं।
इन दिनों देश के कई भागों में डिप्थीरिया (Diphtheria) के मामले सामने आ रहे है, जिससे कई मासूमों की जान पर आफ़त बन आई है । डिप्थीरिया एक संक्रामक रोग है जो प्रायः 3 से 10 साल के बच्चो को अपना शिकार बनाता है प्राणधातक रोगो की श्रेणी में आने वाला यह रोग आम बोलचाल में गलधोंटू के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग कोरिनीबेक्टीरियम डिफ्थेरी नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। सितंबर से फरवरी के दिन इसको पनपने के लिये ज्यादा अनुकुल होते है। खाँसने या छींकने आदि पर यह ड्रॉपलेट्स द्धारा आपसमें फैल सकता है।
डिफ्थेरिया रोग मुख्यतः गला, नाक व स्वरयंत्र को प्रभावित करता है। बाद में अन्य अंग भी इससे प्रभावित हो सकते है। पीडी़त बच्चे के गले में दर्द व खाने में तकलीफ के साथ बुखार आ जाता है ।शुरुआती दिनों में टॉन्सिल जैसे लक्षण मिलते है जिससे कई बार यह रोग पकड़ में नहीं आता । इसलिए संदेह होने पर सतर्क होना ज़रूरी है । कुछ बच्चों में गर्दन में दोनों तरफ़ सूजन आ जाती है जिसे बुलनेक भी कहते है। बाद में कमजोरी , घबराहट व बैचेनी के साथ सांस लेने में तकलीफ हो सकती है । गले में टोन्सिल व इसके आसपास गंदे भूरे रंग की परत जमा हो जाती है ।
इसका जावाणु मरीज़ के शरीर में एक्सोटोक्सिन नामक विषालू पदार्थ छोड़ता है जिसका शरीर के कई अंगों पर धातक दुष्प्रभाव पड़ सकता है । ह्रदय पर इसके प्रभाव से मायोकार्डाइटिस नामक जानलेवा अवस्था हो सकती है। तंत्रिका तंत्र प्रभावित होने से कोमल तालू का लकवा हो सकता है जिससे खाते समय खाना नाक से बाहर आने लगता है।
यह एक ऐसा गंभीर रोग है जिसमें जल्द से जल्द इलाज मिलना बेहद ज़रूरी है । शुरुआती 24 से 48 धंटे प्रभावी इलाज के लिये सबसे अहम होते है । इस रोग में एडीएस (एन्टीडिफ्थेरिक सीरम) सबसे कारगर दवा होती है।
राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत सभी बच्चों को इस रोग के विरुद्ध टीके लगाये जाते है । ये टीके (पेंटावैलेंट वैक्सीन के एक घटक के रूप में ) बच्चे के डेढ, ढाई व साढे तीन माह के होने पर लगाये जाते है । अतिरिक्त सुरक्षा के लिए फिर बूस्टर डोज़ डेढ, पाँच, दस व सोलह साल के होने पर लगवाने की सलाह दी जाती है।
जन्म के बाद जिन बच्चों को ये टीके नहीं लगे होते है, उन्हे यह रोग होने की संभावना ज्यादा होती है। रोग होने पर ऐसे बच्चों को अस्पताल में पृथक रुप से आइसोलेसन में रखा जाता है।
Published on:
17 Oct 2024 02:07 pm
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