इससे किस तरह की समस्याएं हो सकती हैं?
इस बीमारी को साइलेंट किलर भी कहते हैं। क्योंकि खासकर रीढ़ की हड्डी, कूल्हों व कलाई की हड्डी में फै्रक्चर से पहले कोई लक्षण नहीं दिखते। अब तक रोग के ज्यादातर मामले महिलाओं में पाए जाते थे। लेकिन पिछले ५-१० सालों में हुए कई शोधों के दौरान पुरुषों में भी इसकी शिकायत पाई गई। हालांकि पुरुषों के सेक्स हार्मोन में अचानक कमी नहीं आती व ७० साल की उम्र तक बरकरार रहता है। इसलिए पुरुष इस रोग से बचे ही रहते हैं।
रोग से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतें?
वजन नियंत्रित करने के अलावा शरीर में कैल्शियम व विटामिन-डी की मात्रा संतुलित रखनी चाहिए। पुरुषों में धूम्रपान, शराब पीना, रोग की फैमिली हिस्ट्री, छोटी हड्डियां, तीन माह से ज्यादा कोर्टिकॉस्टेरॉयड दवाओं का प्रयोग व किडनी या लिवर संबंधी बीमारियों के कारण रोग की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें ४५ वर्ष के बाद बोन मिनरल डेंसिटी टैस्ट करवाना चाहिए। साथ ही यदि हड्डियां छोटी या कमजोर हैं तो फै्रक्चर से बचाव के लिए डॉक्टरी सलाह से दवाएं लेनी चाहिए।