
महर्षि पतंजलि ने योग को आठ भागों (नियमों) में बांटा है जिसे अष्टांग योग कहते हैं।
योग को लेकर कई परिभाषाएं मौजूद हैं जिनमें से दो प्रमुख हैं। पहली परिभाषा के अनुसार गीता में लिखा है 'योग: कर्मसु कौशलम्' अर्थात् फल की इच्छा के बिना कर्म की कुशलता ही योग है। दूसरी परिभाषा महर्षि पतंजलि द्वारा दी गई जिन्हें योग गुरु या जनक माना जाता है। महर्षि के अनुसार 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:' यानी मन की इच्छाओं को संतुलित बनाना योग कहलाता है। महर्षि पतंजलि ने योग को आठ भागों (नियमों) में बांटा है जिसे अष्टांग योग कहते हैं।
यम : इसमें सत्य व अहिंसा का पालन करना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्या का पालन व ज्यादा चीजों को इक्कठा करने से बचना शामिल है।
नियम : ईश्वर की उपासना, स्वाध्याय, तप, संतोष और शौच महत्वपूर्ण माने गए हैं।
आसन : स्थिर की अवस्था में बैठकर सुख की अनुभूति करने को आसन कहते हैं।
प्राणायाम : सांस की गति को धीरे-धीरे वश में करना प्राणायाम कहलाता है।
प्रत्याहार : इन्द्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर आंतरिक विषयों में लगाने को प्रत्याहार कहते हैं।
धारणा : संसार की हर वस्तु को समान समझना धारणा कहलाता है।
ध्यान : मन की एकाग्रता।
समाधि : इस दौरान न व्यक्तिदेखता है, न सूंघता है, न सुनता है व न स्पर्श करता है।
लाभ हैं कई -
योग से मस्तिष्क शांत होता है जिससे तनाव कम होकर ब्लड प्रेशर, मोटापा और कोलेेस्ट्रॉल में कमी आती है। मांसपेशियां मजबूत होती हैं। नर्वस सिस्टम में सुधार होता है। शरीर की रोगों से लड़ने की ताकत में इजाफा होता है। जिससे आप बार-बार बीमार नहीं पड़ते।
आयुर्वेद व योग एक-दूसरे के पूरक आयुर्वेद विज्ञान है और योग विज्ञान का अभ्यास, ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। योग विशेषज्ञ के अनुसार योग और आयुर्वेद यह समझ विकसित करने में मदद करते हैं कि शरीर कैसे काम करता है और खानपान एवं दवाओं का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। रोजाना योग करने से शरीर के अंगों के काम करने की क्षमता में सुधार आता है। इससे शरीर में रक्त प्रवाह भी सुधरता है और तनाव दूर करने में मदद मिलती है।
इन बातों का रखें ध्यान
सही समय
योग करने के लिए सबसे सही समय ब्रह्म मुहूर्त का होता है क्योंकि इस दौरान पेट काफी हल्का होता है और नींद लेने के बाद शरीर काफी रिलेक्स होता है। शौच आदि के बाद व्यक्ति जब योग करता है तो उसे अन्य समय के अलावा ज्यादा लाभ होता है।
जल्दबाजी न करें -
योग हमसे मानसिक तौर पर अधिक जुड़ा है इसलिए ध्यान रखें कि इसका अभ्यास जल्दबाजी में नहीं करें। पूरी चेतना के साथ योग करने से ही इसका पूरा लाभ मिल पाता है। कई लोग आसन न हो पाने से फौरन हताश हो जाते हैं और छोड़ने का मन बना लेते हैं। धैर्य रखें क्योंकि जैसे-जैसेे आप आसन करते जाएंगे शरीर का लचीलापन बढ़ेगा व क्षमता बढ़ती चली जाएगी।
मैट का प्रयोग -
योग के दौरान शरीर से ऊर्जा निकलती है। जब हम जमीन पर योगाभ्यास करते हैं तो पृथ्वी की ऊर्जा और शरीर की ऊर्जा से बॉडी में असंतुलन होने लगता है इसलिए इसे मैट, चटाई या दरी पर ही करें।
पानी न पिएं -
जब हम योग का अभ्यास करते हैं तो धीरे-धीरे शरीर में ऊष्मा का स्तर बढ़ता है। लेकिन अगर इस दौरान ठंडा पानी पी लिया जाए तो ऊष्मा के स्तर में तेजी से गिरावट आने से एलर्जी, कफ और जुकाम की समस्या हो सकती है। योग के 15 मिनट बाद ही पानी पिएं।
शौच -
अभ्यास से पूर्व या उस दौरान मोशन या यूरिन की इच्छा हो तो आवेग को कभी भी रोकें नहीं।
बरतें सावधानी -
जो लोग हाल ही में लंबी बीमारी से उठे हों, गर्भवती महिलाएं और अत्यधिक शारीरिक कमजोरी होने पर विशेषज्ञ की सलाह व उनकी देखरेख में ही योगाभ्यास करना उचित रहता है।
Published on:
25 Feb 2019 01:05 pm
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