scriptपैरों की नसाें में रुकावट हाेने से हाेता है लैग अटैक | know peripheral artery disease, Symptoms and causes | Patrika News

पैरों की नसाें में रुकावट हाेने से हाेता है लैग अटैक

locationजयपुरPublished: Feb 26, 2019 03:55:25 pm

पैरों में भी रक्त नलिकाओं में रुकावट या सिकुड़ने से गैंगरीन या जख्म बनने शुरू हो जाते हैं

leg attack

पैरों की नसाें में रुकावट हाेने से हाेता है लैग अटैक

हृदय की धमनियों की तरह ही हमारे पैरों में रक्त नलिकाएं होती हैं। जैसे दिल की नलियों में ब्लॉकेज या रुकावट से हार्ट अटैक आता है, वैसे ही पैरों में भी रक्त नलिकाओं में रुकावट या सिकुड़ने से गैंगरीन या जख्म बनने शुरू हो जाते हैं। इस रोग को पेरीफेरल आर्टिरियल डिजीज, लैग अटैक या पैर का काला पड़ना भी कहते हैं। इस अवस्था में कई बार व्यक्ति का पैर भी काटना पड़ सकता है। आइए जानते हैं इस समस्या के बारे में :-
मर्ज बढ़ता है ऐसे
चलते समय दर्द व ऐंठन, पैरों में बेचैनी, पैर के अंगूठे में कालापन या असहनीय दर्द से नींद न आना।

उपचार की प्रक्रिया
डॉक्टर उपचार के लिए सबसे पहले डॉपलर टेस्ट करते हैं जिससे यह पता चलता है कि रक्त नलिकाओं में कहां और कितनी रुकावट है। यदि जांच में पेरीफेरल वैस्क्यूलर डिजीज सामने आती है तो आमतौर पर एंजियोग्राफी की जाती है। रक्त नलिकाओं की सिकुडऩ को दूर करने के लिए बैलून तकनीक प्रयोग की जाती है। ऐसे में रेडियोलॉजिस्ट किसी संकुचित या अवरुद्ध रक्त धमनी को खोलने के लिए इसमें बैलून को फुलाते हैं लेकिन कई मामलों में सिकुड़न कम नहीं होने पर स्टेंट का प्रयोग कर नलिका को खोला जाता है। कई बार गंभीर स्थिति होने पर मरीज की बाइपास सर्जरी भी करनी पड़ सकती है। बैलूनिंग तकनीक में लगभग 50 हजार रुपए खर्च आता है। इसके अलावा स्टेंट में करीब 1-2 लाख रुपए का खर्च आता है। इलाज का खर्च निजी और सरकारी अस्पतालों में कम या ज्यादा भी हो सकता है।
बरतें सावधानी
मरीज को डॉक्टर के निर्देशानुसार खून पतला करने वाली दवाओं को इलाज के बाद निरंतर लेना चाहिए। इसके अलावा नियमित व्यायाम के साथ-साथ डायबिटीज व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखना चाहिए। हृदय रोग, ब्लड प्रेशर या पैरों में दर्द की तकलीफ होने पर लापरवाही बरतने की बजाय तुरंत वैस्क्यूलर सर्जन (नाड़ी विशेषज्ञ) से संपर्क करें।
ये हैं रोग की वजह
धूम्रपान करना, अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल, व्यायाम न करना, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर व मोटापा।

इन्हें ज्यादा खतरा
यह रोग 50-70 साल की उम्र के लोगों और 40-45 वर्ष की आयु के उन मरीजों को हो सकता है जिन्हें डायबिटीज की समस्या हो।
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