चलते समय दर्द व ऐंठन, पैरों में बेचैनी, पैर के अंगूठे में कालापन या असहनीय दर्द से नींद न आना। उपचार की प्रक्रिया
डॉक्टर उपचार के लिए सबसे पहले डॉपलर टेस्ट करते हैं जिससे यह पता चलता है कि रक्त नलिकाओं में कहां और कितनी रुकावट है। यदि जांच में पेरीफेरल वैस्क्यूलर डिजीज सामने आती है तो आमतौर पर एंजियोग्राफी की जाती है। रक्त नलिकाओं की सिकुडऩ को दूर करने के लिए बैलून तकनीक प्रयोग की जाती है। ऐसे में रेडियोलॉजिस्ट किसी संकुचित या अवरुद्ध रक्त धमनी को खोलने के लिए इसमें बैलून को फुलाते हैं लेकिन कई मामलों में सिकुड़न कम नहीं होने पर स्टेंट का प्रयोग कर नलिका को खोला जाता है। कई बार गंभीर स्थिति होने पर मरीज की बाइपास सर्जरी भी करनी पड़ सकती है। बैलूनिंग तकनीक में लगभग 50 हजार रुपए खर्च आता है। इसके अलावा स्टेंट में करीब 1-2 लाख रुपए का खर्च आता है। इलाज का खर्च निजी और सरकारी अस्पतालों में कम या ज्यादा भी हो सकता है।
मरीज को डॉक्टर के निर्देशानुसार खून पतला करने वाली दवाओं को इलाज के बाद निरंतर लेना चाहिए। इसके अलावा नियमित व्यायाम के साथ-साथ डायबिटीज व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखना चाहिए। हृदय रोग, ब्लड प्रेशर या पैरों में दर्द की तकलीफ होने पर लापरवाही बरतने की बजाय तुरंत वैस्क्यूलर सर्जन (नाड़ी विशेषज्ञ) से संपर्क करें।
धूम्रपान करना, अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल, व्यायाम न करना, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर व मोटापा। इन्हें ज्यादा खतरा
यह रोग 50-70 साल की उम्र के लोगों और 40-45 वर्ष की आयु के उन मरीजों को हो सकता है जिन्हें डायबिटीज की समस्या हो।