
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है। माता-पिता दोनों में से किसी एक के जीन में गड़बड़ी होने के कारण यह रोग हो सकता है।
थैलेसीमिया क्या है ?
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है। माता-पिता दोनों में से किसी एक के जीन में गड़बड़ी होने के कारण यह रोग हो सकता है। जब दोनों दोषपूर्ण जीन एक साथ आते हैं तो उनसे होने वाली संतान को भी यह रोग हो जाता है। ऐसे जीन्स हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। लाल रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन होता है। जो शरीर के लिए लाइफलाइन का काम करता है। ऐसे में हीमोग्लोबिन का प्रभावित होना कई दिक्कतें पैदा करता है। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को जीवनभर रक्त ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता रहती है।
इसके लक्षण क्या हैं?
शिशु में हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने के कारण 4 से 6 माह की आयु में इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। बच्चों का शरीर पीला पडऩा, जल्द थक जाना और शारीरिक व मानसिक विकास में रुकावट थैलेसीमिया के लक्षण हैं। चिकित्सकीय जांच में बच्चे का लिवर और तिल्ली बढ़ी हुई पाई जाती है। ऐसे मामलों में बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होती है। साथ ही हार्ट फेल्योर की स्थिति बन जाती है।
कौनसा आयु वर्ग थैलेसीमिया से प्रभावित होता है?
आमतौर पर थैलेसीमिया का एक वर्ष की आयु में ही निदान किया जाता है। थैलेसीमिया इंटरमीडिया का बचपन के बाद निदान कम ही हो पाता है और युवावस्था में इसका समाधान बेहद मुश्किल है।
इस रोग को कैसे ठीक किया जा सकता है?
वर्तमान में इसका एक ही इलाज है बोन मैरो ट्रांसप्लांट यानी अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण। ऐसे मरीजों को अपना जीवन बचाने के लिए हर 3 से 4 हफ्ते में नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन करवाना जरूरी होता है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन में दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन से संक्रमण और शरीर में लौह तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है।
थैलेसीमिया मरीज की खुराक क्या होनी चाहिए?
थैलेसीमिया के मरीज की डाइट अच्छी होनी चाहिए। खासकर प्रोटीन की अधिक मात्रा वाले फूड लेने चाहिए। इसके अलावा मिनरल और विटामिन्स भी डाइट में शामिल करना जरूरी है। भोजन में सब्जी और फलों की मात्रा अधिक से अधिक दें।
Published on:
21 May 2019 09:09 am
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