
हिस्ट्री ऑफ जूना महल डूंगरपुरÓ पुस्तक का हुआ विमोचन
डूंगरपुर. समय का रथ कभी थमता नहीं है। समय के साथ-साथ इतिहास ओझल होता रहता है। पर, डूंगरपुर के इतिहास को आमजन से रुबरु कराने में भाषा एवं पुस्तक विभाग गृह मंत्रालय भारत सरकार से सेवानिवृत्त उपनिदेशक एवं वयोवृद्ध इतिहासकार महेश पुरोहित के योगदान को सदैव याद किया जाता रहेगा। इसी क्रम में पिछले दिनों पुरोहित द्वारा लिखित एक और संग्रहणीय पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ जूना महल डूंगरपुर का विमोचन हुआ।
उदयविलास पैलेस में महारावल महिपाल सिंह, राज्यसभा सांसद हर्षवर्धनसिंह, प्रियदर्शिनी सिंह तथा इतिहासकार महेश पुरोहित के आतिथ्य में हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत में पुरोहित ने डूंगरपुर इतिहास एवं जूना महल से जुड़ी तथ्यात्मक एवं प्रमाणिक जानकारी सांझा करते हुए कहा कि डूंगरपुर का इतिहास अन्य रियासतों की तुलना में काफी गौरवशाली रहा है। लेकिन, यह कालांतर में अधिक प्रचारित नहीं हो पाया। शोथार्थियों यदि डूंगरपुर रियासत पर शौध करें, तो यहां के समृद्धशाली इतिहास से रुबरु हो सकते हैं। पुरोहित ने बताया कि जूना महल के इतिहास को विश्व पटल पर स्थापित करने के ध्येय से इस पुस्तक को अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया गया है। पुस्तक के लेखन एवं इतिहास से संबंधित तथ्यों के संकलन में राजपरिवार सहित निखिल आर. चौबीसा एवं रुपेश भावसार का अतुल्यनीय सहयोग रहा है। पुस्तक का प्रकाशक ए-केयर अर्थवा-एन ऑरगोनाइजेशन ऑफ कल्चर, आर्ट, रिसर्च एण्ड एज्यूकेशन डूंगरपुर ने किया है।
'पुरोहित का योगदान अतुल्यनीयÓ
राज्यसभा सांसद सिंह ने कहा कि यह डूंगरपुर के लिए गौरव की बात है कि पुरोहित सेवानिवृत्ति के बाद डूंगरपुर आए। इसी दौरान स्वीडिश इंटरनेशनल डवलपमेंट एजेंसी (सीडा) के सहयोग से जूना महल में बहियों, चौपड़े, ख्यातें एवं अन्य ऐतिहासिक विरासते जो कमों में बंद और अव्यवस्थित थी उनको सीडा के डा. हंस एवं उनकी पत्नी एना के सहयोग से पुरोहित ने अध्ययन किया और उन्हें क्रमवार एवं वर्षवार संकलित करके उदयविलास में महारावल बिजयसिंह शोध अभिलेखागार के रुप में स्थापित करवाया। यह एक ऐसा अभिलेखागार जहां से वर्षों पूरानी कोई भी ऐतिहासिक तथ्य को चंद मिनटों में ढूंढा जा सकता है।
वागड़ का इतिहास समृद्धशाली
एमके महिपाल सिंह ने कहा कि इतिहास को सही रुप में तथ्यात्मक रुप से प्रस्तुत करने में पुरोहित का योगदान अवर्णनीय है। पुरोहित की यह पुस्तक डूंगरपुर एवं इतिहास के शौधार्थियों के लिए नायाब तौहफा है। सिंह ने कहा कि डूंगरपुर का इतिहास 738 वर्ष पुराना है। लेकिन, अक्सर वागड़ के इतिहास को मेवाड़ के साथ जोड़ा जाता है। जबकि, वागड़ का इतिहास काफी समृद्धशाली रहा है। सिंह ने बताया कि सूरजमल बागडिया के मृत्यु के उपरांत के बाद इतिहास शोध में रिक्तिता आ गई थी। पुरोहित ने अथक प्रयासों से इस रिक्तिता को पूर्ण किया और इतिहास सप्रमाण सहित कई नए तथ्य उद्घाटित किए।
यह हुए शामिल
सवितादेवी पुरोहितत, भारतनंदन पुरोहित, इन्दुशेखर पुरोहित, मकरंद पुरोहित, सवितादेवी पुरोहित, सूरजदेवी पुरोहित, बीबा एवं निशा पुरोहित सहित धीरज टेलर, अख्तर बाबा एवं मयंक शर्मा आदि शामिल हुए।
पूर्व में भी कराया है इतिहास से दर्शन
इससे पूर्व भी पुरोहित की जूना महल 2006, जय गोपाल पुष्टिमार्ग और डूंगरपुर, बेणेश्वर : सोम-महीसागर संगम तीर्थ, डूंगरपुर : परिचय व संक्षिप्त इतिहास और डूंगरपुर : उन्नसवीं से बीसवीं सदी की ओर भी पुस्तके प्रकाशित हुई है और इन पुस्तकों ने ऐतिहासिक घटनाओं को मय प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया है।
यह तथ्य आए सामने...
1. पुरोहित के शोध के अनुसार महारावल जसवंत सिंह द्वितीय अंगे्रजी हुकुमत के खिलाफ थे। उस समय सूरमा अभयसिंह अंग्रेजों के पक्षधर थे। 27 जुलाई 1844 को बिट्रिश हुकुमत के खिलाफ हुए विद्रोह में शस्त्रों का प्रयोग हुआ। इसके प्रमाण के रुप में जूना महल में आज भी गोलियां निशान मौजूद है।
2. राजस्थान के किसी भी महल में इतनी अधिक संख्या में चित्रकारी नहीं देखने को मिलती है, जितनी जूना महल में है। जिस कक्ष एवं कौने में प्रवेश किया जाए भित्तिचित्र नजर आते हैं। यह सभी फ्रेस्को (आला-गिला) पद्धति से चित्रण से किया गया है। यह काफी अधिक दुर्लभ है।
3. अमूमन यहां के लोगों को असभ्य माना जाता रहा है और खुले में शौच करते होंगे यह जाना जाता रहा है। लेकिन, यह तथ्य बिल्कूल गलत है। इस पुस्तक में यह बताया है कि डूंगरपुर रियासत में तो आज से 600-700 वर्ष पूर्व ही शौचालय बनाने की परम्परा थी। वह भी विशेष तकनीक से पाइप आधारित बने थे। स्वच्छता को लेकर डूंगरपुर रियासत काफी जागरूक थी।
4. झरोखा-दर्शन अर्थात राजा झरौखे में बैठकर अपनी प्रजा की समस्याओं को सुना करते थे इस संबंध में अब तक यह समझा जाता है कि झरोखा-दर्शन की परम्परा मुगलों से आई है। लेकिन, मुगलों के आने के 200 वर्ष पूर्व से ही जूना महल में झरोखे बने हुए हैं। जूना महल में सूरज गोखड़ा है और यहां से तत्कालीन महारावल प्रजा से रुबरु होते थे।
5. नारी शक्तिकरण को लेकर अब सरकारे और प्रशासन जागे हैं। लेकिन, डूंगरपुर रियासतकाल में महिलाओं को विशेष शस्त्र शिक्षा दी जाती थी। महिलाओं को युद्धकला मे पारंगत किया जाता था।
6. डूंगरपुर में साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल रियासत काल से चली आ रही है। महारावल उदयसिंह द्वितीय के कार्यकाल में सभी समुदाय के लोगों को सामूहिक भोज के लिए आमंत्रित किया जाता था। यहां सामूहिक घुमर नृत्य होता था।
Updated on:
11 Nov 2019 12:17 pm
Published on:
11 Nov 2019 12:15 pm
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