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रेलवे भी परेशान, पर्सनल आईडी से तत्काल टिकट बुकिंग का काला धंधा, पुलिस गिरफ्त मेंं शहर के 3 दलाल

आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर व्यक्तिगत आईडी के जरिए टिकट बुकिंग का धंधा कर रहे हैं। रेलवे खुद दलालों की इस हरकत से परेशान हो गया।

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दुर्ग

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Dakshi Sahu

Nov 01, 2017

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दुर्ग . आप इस बात से हैरान हों कि तत्काल टिकट का कोटा कुछ मिनटों में ही खत्म कैसे हो जाता है तो जान लीजिए, यह काम उन दलालों का है जो आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर व्यक्तिगत आईडी के जरिए टिकट बुकिंग का धंधा कर रहे हैं। रेलवे खुद दलालों की इस हरकत से परेशान हो गया।

दुर्ग-भिलाई से ऑनलाइन टिकट बुकिंग की बढ़ती संख्या के बाद जब पड़ताल की गई तो ऑनलाइन बुकिंग में सेंध लगाने वाले दलाल सामने आए। एक महीने में ही तीन दलालों को दबोचा गया और अब भी 30 से ज्यादा दलालों पर नजर रखी जा रही है।

आईआरसीटीसी पर्सनल आईडी से बने टिकट की मॉनिटरिंग कर रही है। ऑनलाइन बुक क राए टिकट संदिग्ध नजर आते ही उस टिकट को शून्य किया जा रहा है। अक्टूबर में ऐसे तीन प्रकरण सामने आए हैं। यात्री कन्फर्म टिकट लेकर ट्रेन में पहुंचे लेकिन आरक्षण सूची से उनका नाम गायब था।

यात्रियों ने हंगामा किया तो टीसी ने रेलवे से जानकारी लेकर बताया कि टिकट निरस्त कर दिया गया है। टिकट किसी दलाल से खरीदा है जिसने पर्सनल आईडी से इसे बुक कराया था। अब उनको नया टिकट लेना होगा या पैनाल्टी भरकर यात्रा करनी होगी। यही नहीं रेलवे चाहे तो ऐसे यात्री को बिना टिकट मानकर प्रकरण दर्ज कर सकता है।

जब एक ही आईडी से दो से अधिक स्थानों के अलग-अलग टिकट खरीदे जाते हैं तो आईडी को संदिग्ध मानकर उसकी निगरानी शुरू कर दी जाती है। अक्टूबर में ही आरपीएफ ने छापामार कार्रवाई कर भिलाई क्षेत्र में दबिश देकर तीन टिकट दलालों को पकड़ा था। सात माह पहले सिंधी कॉलोनी दुर्ग से दो दलालों को पुलिस हवालात पहुंचा चुकी है।

आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर 30-40 आईडी बनाकर टिकट बुकिंग की जाती है। इस तरह व्यवसायिक तौर पर टिकट बुकिंग का लाइसेंस लेने से बच जाते हैं। इस तरह लाइसेंस फीस, टिकट बुकिंग का शुल्क और सरचार्ज तक माफ हो जाता है, जबकि दलाल इसके बदले प्रति यात्री 500 रुपए तक अतिरिक्त वसूलते हैं।

टिकट दलाल कोई एक पर्सनल आईडी से टिकट नहीं बनाते है। वे फर्जी आईडी तैयार कर टिकट बनाते है। रेलवे आम यात्रियों के लिए तत्काल टिकट बुक करने स्लीपर क्लास के लिए सुबह ११ बजे सॉफ्टवेयर ऑन होता है। एसी टिकट की बुकिंग सुबह १० बजे शुरू होती है। टिकट दलाल एक साथ पांच से दस आईडी खोलकर टिकट बुक करने की तैयारी करते हैं। विंडो ओपन होते ही एक के बाद एक आईडी से टिकट बुक करते हैं।

इस तरह तत्काल कोटा तेजी से खत्म होता है जबकि अधिकृत एजेंट टिकट बनाने में पीछे रहते हैं। उन्हें आधा घंटा विलंब से टिकट बनाने का समय मिलता है। अधिकृत एजेंट विकास ताम्रकार ने बताया कि अगर कोई एजेंट पर्सनल आईडी से टिकट तैयार कर रहा है तो उनसे टिकट न लें। टिकट लेते समय यात्री डिटेल कॉलम के ठीक नीचे ध्यान से देखें। एजेंट अधिकृत है तो उसके फर्म का नाम कालम के ठीक नीचे लिखा होगा। एड्रेस भी लिखा होगा। अधिकृत नहीं हो तो उसमें टिकट बनाने वाले व्यक्ति का नाम व ई-मेल एड्रेस होता है।

रेलवे एक्ट में कार्रवाई
मुख्य टिकट निरीक्षक, दुर्ग एल राव ने बताया कि ऑनलाइन बुक कि ए टिकट अगर दलाल से खरीदा गया है तो पकडऩा आसान है। दो से तीन सवाल में ही सच सामने आ जाता है। यात्रा के दौरान पकड़े गए तो सबसे पहले प्रकरण डब्ल्यूटी का बनाते हैं। इसके बाद प्रकरण आरपीएफ को सौप दिया जाता है। आरपीएफ रेलवे एक्ट के तहत यात्रियों पर कार्रवाई करती है।

प्रभारी आरपीएफ पी तिवारी ने बताया कि टिकट के अवैध कारोबार क रने वालों के खिलाफ हमारी कार्रवाई निरतंर चल रही है। वर्ष २०१६ में जहां चार प्रकरण तैयार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। इस वर्ष भिलाई में तीन और दुर्ग में एक प्रकरण तैयार किए हैं। कुछ शिकायतें और मिली हैं जिसकी जांच की जा रही है। शिकायत सही मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

लेते थे अतिरिक्त पैसा
1असल में दलाल बैठे-बैठे रुपए कमाते हैं। अगर वे पंजीयन कराते हैं तो आईडी बनाने के लिए पहले ४०,००० रुपए जमा करना होता है। इसके बाद हर साल नवनीकरण के लिए तीन हजार रुपए देना होता है। पंजीयन कराने के बाद अधिकृत एजेंट को स्लीपर क्लास टिकट के लिए प्रति बर्थ ३० रुपए और एसी क्लास बर्थ के लिए केवल ४० रुपए अतिरिक्त लेना है, जबकि बिना कुछ किए टिकट दलाल पर्सनल आईडी से टिकट तैयार कर वे यात्रियों से प्रतिबर्थ १०० रुपए से ५०० रुपए तक लेते हैं।