सौरभ एक साल से पंडवानी में कुछ इस तरह रम गया है कि उसे जब जहां वक्त मिलता है वह पंडवानी गाने बैठ जाता है। दादी की जैसी भाव भंगिमाएं के साथ ही कुछ अपनी स्टाइल भी उसने तैयार की है। सौरभ ने बताया कि अब तक जो सीखा उसे दिखाने का कल पहली बार मौका मिलने जा रहा है। @Patrika. उसे इस बात की खुशी ज्यादा है कि उसे पहला मंच बीएसपी के लोककला महोत्सव में मिला जहां छत्तीसगढ़ के कई महान कलाकार प्रस्तुति दे चुके हैं और उनमें से दादी तीजन भी है जब बरसों पहले इस मंच पर प्रस्तुति देने के बाद उनकी ख्याति और बढ़ी।
सौरभ ने बताया कि दादी ने उन्हें पंडवानी की शुरूआत अपने नाना की तरह ही की। वह एक दिन एक प्रसंग को गाकर बताती हैं और दूसरे दिन उसे सुनती हैं। कर्ण-वर्ध का प्रसंग उसने सबसे पहले सीखा। फिर शंकर-अर्जुन प्रसंग और द्रोपदी चीरहरण के साथ ही द्रोपदी स्वयंवर का प्रसंग अभी सीख रहा है। @Patrika. उसने बताया कि दादी अक्सर प्र्रोग्राम देने बाहर ज्यादा जाती है। वह रियाज करता है और जब दादी आती है तो उसकी गलतियों को बताती है।