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मंदी के साथ-साथ देश में बढ़ी आर्थिक सुस्ती, तीन साल में जानिए क्या हुआ नोटबंदी का हाल

33 फीसदी लोगों का मानना है कि नोटबंदी ( demonetisation ) के कारण अर्थव्यवस्था में सुस्ती 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को किया बंद

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3 years of demonetisation

नई दिल्ली। आज नोटबंदी ( demonetisation ) के तीन साल पूरे हो चुके हैं। 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ( Modi govt ) ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया था। मोदी सरकार के इस फैसले से देश में कई महीनों तक लोग कैश की परेशानी से जूझते रहे। देश के लोगों को नोटबंदी के दौरान कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही देश की इकोनॉमी ( Indian economy ) पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा है।

वहीं, आज भी लगभग करीब 33 फीसदी लोगों का मानना है कि नोटबंदी का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था की सुस्ती के रूप में सामने आया है। आज देश में जो मंदी की स्थिति पैदा हुई है वह तीन साल पहले हुई नोटबंदी का ही परिणाम है।


सर्वे के दौरान मिली जानकारी

देश में नोटबंदी को लेकर कराए गए सर्वे में सामने आया है कि देश की इकोनॉमी में जो सुस्ती आई है वह सब नोटबंदी का ही परिणाम है। 8 नवंबर 2016 को पीएम मोदी ने ऐलान करते हुए कहा था कि देश में जितना ज्यादा कैश सर्कुलेशन में होगा इतना ज्यादा ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मोदी सरकार ने देश में नोटबंदी करने का फैसला लिया था। आइए आपको बताते हैं कि नोटबंदी को लेकर लोगों का क्या मानना है-


नहीं पड़ा नकारात्मक प्रभाव

28 फीसदी का मानना है कि नोटबंदी का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। ऑनलाइन कम्युनिटी मंच लोकल सर्किल्स के सर्वे के अनुसार 32 फीसदी लोगों का मानना है कि नोटबंदी की वजह से असंगठित क्षेत्र के कामगारों की आमदनी का जरिया समाप्त हो गया।


50 हजार लोगों की ली गई राय

इस सर्वे में देशभर के 50,000 लोगों की राय ली गई है। वहीं नोटबंदी के फायदों के बारे में 42 फीसदी लोगों ने कहा कि इससे बड़ी संख्या में टैक्स चोरी करने वाले लोगों को कर दायरे में लाया जा सका। वहीं 25 फीसदी का मानना है कि इससे कोई फायदा नहीं हुआ।


पूरे हुए तीन साल

करीब 21 फीसदी लोगों की राय थी कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में कालाधन कम हुआ जबकि 12 फीसदी ने कहा कि इससे प्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ा। उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में 8 नवंबर 2016 को अर्थव्यवस्था में उस समय प्रचलन में रहे 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को निरस्त कर दिया था। यह कदम अर्थव्यवस्था में कालेधन को समाप्त करने के इरादे से उठाया गया था।