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APU Report: कोरोना महामारी ने 23 करोड़ भारतीयों को गरीबी में धकेला

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण गरीबी दर में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और शहरी गरीबी दर में लगभग 20 अंकों की वृद्धि हुई है।

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Saurabh Sharma

May 07, 2021

APU Report: 23 crore Indians pushed into poverty amid pandemic

APU Report: 23 crore Indians pushed into poverty amid pandemic

नई दिल्ली। कोरोना महामारी की वजह से जिस तरह लॉकडाउन लगाए गए और लोगों की आजीविका पर असर पड़ा, उससे पिछले एक साल में करीब 23 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए। इसका दावा अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण गरीबी दर में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और शहरी गरीबी दर में लगभग 20 अंकों की वृद्धि हुई है।

23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे
कामकाजी भारत की स्थिति, कोविड के एक साल नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है, महामारी के दौरान राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन सीमा 23 करोड़ तक पहुंच गई। गौरतलब है कि अनूप सत्पथी समिति द्वारा अनुशंसित राष्ट्रीय न्यूनतम वेज 375 रूपए प्रतिदिन है। यह नोट किया गया कि यद्यपि लोगों की आय हर जगह कम हुई है, फिर भी महामारी का असर गरीब घरों पर बहुत अधिक पड़ा है। पिछले साल अप्रैल और मई में 20 प्रतिशत गरीब परिवारों ने अपनी पूरी आय खो दी।

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अमीरों को हुआ कम नुकसान
इसके विपरीत, अमीर घरों को अपने पूर्व-महामारी आय के एक चौथाई से भी कम का नुकसान हुआ। पूरे आठ महीने की अवधि (मार्च से अक्टूबर) के दौरान, 10 प्रतिशत के निचले हिस्से में एक औसत घराने को 15,700 रुपए का नुकसान हुआ, या सिर्फ दो महीने की आय में गुजारा करने को मजबूर होना पड़ा। इसके अलावा, रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल लॉकडाउन के दौरान देश भर में अप्रैल-मई 2020 के दौरान लगभग 10 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। लगभग 1.5 करोड़ श्रमिक 2020 के अंत तक काम से बाहर रहे। अधिकांश जून 2020 तक काम पर वापस आ गए थे, लेकिन यहां तक कि 2020 के अंत तक, लगभग 1.5 करोड़ लोग काम से बाहर रहे।

इन राज्यों में सबसे ज्यादा लोग हुए बेरोजगार
रिपोर्ट के अनुसार आय में भी गिरावट दर्ज की गई। अक्टूबर 2020 में प्रति व्यक्ति औसत मासिक घरेलू आय (4,979 रुपए) जनवरी 2020 में अपने स्तर से नीचे (5,989 रुपए) थी। महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे इलाकों में सबसे ज्यादा लोगों की नौकरियां छूटीं। लॉकडाउन के दौरान और बाद के महीनों में, 61 प्रतिशत कामकाजी पुरुष कार्यरत रहे और 7 प्रतिशत ने रोजगार खो दिया और काम पर नहीं लौटे।

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47 फीसदी महिलाओं को नौकरी का नुकसान
महिलाओं के लिए, केवल 19 प्रतिशत ही कार्यरत रहीं और 47 प्रतिशत को लॉकडाउन के दौरान स्थायी नौकरी का नुकसान उठाना पड़ा और 2020 के अंत तक भी उनको रोजगार नहीं मिला। रिपोर्ट से पता चला है कि कोविड की वजह से युवा श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। 15-24 वर्ष के आयु वर्ग में 33 फीसदी लोगों को दिसंबर 2020 तक रोजगार नहीं मिला जबकि 25 से 44 साल के बीच 6 फीसदी लोग रोजगार गंवा चुके थे।