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बैकों का फंसा कर्ज और नौकरी के मोर्चे पर पूरी तरह से फेल हुई मोदी सरकार, 4 साल में हुए ये बदलाव

सरकार के लिए इन चार सालों में सबसे ज्यादा सिरदर्द बैंकों के एनपीए और रोजगार के आंकड़ों ने दिए हैं।

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बैकों का फंसा कर्ज और नौकरी के मोर्चे पर पूरी तरह से फेल हुई मोदी सरकार, 4 साल में हुए ये बदलाव

नई दिल्ली। मोदी सरकार के 26 मई को 4 साल पूरे कर लिए हैं। इन 4 सालों में यूं तो सरकार ने कई बड़े रिफॉर्म्स से देश की स्थिति को सुधारने की कोशिश की। नोटबंदी और जीएसटी जैसे अहम फैसलों पर सरकार की किरकिरी भी हुई। लेकिन सरकार के लिए इन चार सालों में सबसे ज्यादा सिरदर्द बैंकों के एनपीए और रोजगार के आंकड़ों ने दिए हैं। सरकार और रिजर्व बैंक की तमाम कोशिशों के बाद भी बैंकों के डूबते लोन पर लगाम नहीं लग सकी। उल्टा बैंकों के एनपीए और बढ़ते गए। आलम ये है कि आज देश के कुल डूबते लोन में 70 फीसदी हिस्सा केवल सरकारी बैंकों का ही है। वहीं रोजगार के आंकड़ों ने भी सरकार को चिंता में डाल रखा है।

किस बैंक पर कितना एनपीए













































बैंक एनपीए(रु में)
एसबीआइ1.99 लाख करोड़
पीएनबी57,630 करोड़
बैंक ऑफ इंडिया49,307 करोड़
बैंक ऑफ बड़ौदा46,307 करोड़
कैनरा बैंक39,164 करोड़
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया38, 286 करोड़
आईसीआईसीआई बैंक44,237 करोड़
एक्सिस बैंक22,136 करोड़
एचडीएफसी बैंक7,644 करोड़

एनपीए से निपटने के लिए उठाए ये कदम

ऐसा नहीं है कि सरकार और आरबीआइ ने बैंकों को एनपीए की मार से निजात दिलाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। लेकिन उसके बावजूद भी ये समस्या बनी हुई है।

बैंकों को 2 लाख करोड़

सरकार ने बैंको के लिए रीकैपटिलाइजेशन प्लान को मंजूरी दी थी। बैंकों को ये पैसा 2 साल के दौरान दिए जाने है। जिसमें 1.35 लाख करोड़ रुपए का रीकैपटिलाइजेशन बॉन्ड लाया जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि इससे बैंकों की स्थिति में सुधार देखा जा सकेगा।

बड़े बैंकों का विलय

सरकार देश के कई बड़े सरकारी बैंकों का विलय कर रही है। साथ ही बैंकों को निर्देश दिया गया है कि जिन बैंकों की ब्रांच में ज्यादा ट्रांजैक्शन नहीं होता है उसे बंद किया जाए। 2017 में ही एसबीआइ के सहयोगी बैंकों के विलय की मंजूरी के बाद सरकार ने पीएनबी, कैनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा समेत 26 बैंकों के विलय का प्रपोजल दे चुकी है।

आरबीआइ का प्रयास

सरकार के साथ साथ आरबीआइ ने भी एनपीए से निपटने के लिए कई प्रयास किए है। आरबीआइ ने ऐसे खातों की पहचान कर उनपर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं जिनपर देश के सभी बैंकों के एनपीए का 25 फीसदी हिस्सा है।

बैंक एनपीए की मार से आम आदमी त्रस्त

बैंक तो एनपीए की मार से जुझ ही रहे हैं लेकिन इसका खामियाजा भी आम आदमी को भुगतना पर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल बैड लोन में मिडिल क्लास की हिस्सेदारी केवल 19 फीसदी की है। लेकिन एनपीए से निपटने के लिए कई बैंकों ने लोन लेने की शर्तें कड़ी कर दी है। जिसके चलते एक सैलरीपेशा या साधारण कारोबारी को लोन मिलने में पहले के मुकाबले अब ज्यादा दिक्कतें हो रही है।

रोजगार के मोर्चे पर ऐसे फिसड्डी साबित हुई सरकार

केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय ने हाल ही में रोजगार को लेकर आंकड़े जारी किए हैं। मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो साल 2015 में महज 1.35 लाख नौकरियां पैदा की गई, जो पिछले सात सालों का सबसे निचला स्तर है। साल 2014 में यह आंकड़ा 4.93 लाख था। हालांकि साल 2016 में इसमें कुछ सुधार हुआ और सरकार 2.31 लाख नौकरियां पैदा कर सकी, लेकिन मौजूदा 2017 का डाटा और भी चिंताजनक नजर आ रहा है। नौकरी.डॉट कॉम के जॉब स्पीक इंडेक्स मुताबिक अप्रैल 2017 में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले नौकरी पैदा करने की मौजूदा दर 10 फीसदी कम रही।