
नई दिल्ली। अगर आप किराए के मकान में रहते हैं और रेंटल हाउस से थोड़े से परेशान हैं तो आपकी परेशानी मुस्कुराहट में तब्दल होने जा रही है। केंद्र सरकार के नए रेंटल हाउसिंग एक्ट को अमल में लाने की तैयारी कर ली है। राज्यों ने केंद्र को भरोसा दिलाया है कि वे जल्द ही अपने राज्य में नया किराया कानून लागू कर देंगे। आपको बता दें कि देश के सभी राज्यों में रेंट कंट्रोल एक्ट 1948 चल रहा था। आइए आपको भी बताते हैं कि नए रेंटल कानून में किराएदार के साथ मकान मालिक को कौन-कौन से फायदे होंगे...
ये होंगे किराएदार और मकान मालिक को फायदे
- केंद्र सरकार नए एक्ट के अनुसार किराए का तीन गुना सिक्योरिटी डिपॉजिट लेना तब तक गैर-कानूनी होगा, जब तक इसका एग्रीमेंट न हो। किराएदार के घर खाली करने पर मकान मालिक को एक महीने के भीतर यह रकम लौटानी होगी।
- बिल्डिंग के ढांचे की देखभाल के लिए किराएदार और मकान मालिक दोनों ही जिम्मेदार होंगे।
- मकानमालिक ढांचे में कुछ सुधार कराता है तो उसे रेनोवेशन का काम खत्म होने के एक महीने बाद किराया बढ़ाने की इजाजत होगी। इसके लिए किरायेदार की सलाह भी ली जाएगी।
- रेंट अग्रीमेंट लागू होने के बाद अगर बिल्डिंग का ढांचा खराब हो रहा है और मकान मालिक रेनोवेट कराने की स्थिति में नहीं है तो किरायेदार किराया कम करने को कह सकता है।
- दोनों पक्षों में किसी भी झगड़े की स्थिति में किरायेदार रेंट अथॉरिटी से संपर्क कर सकता है।
- घर के मुआयने, रिपेयर से जुड़े काम या किसी दूसरे मकसद से आने के लिए भी मकान मालिक को 24 घंटों का लिखित नोटिस एडवांस में देना होगा।
- रेंट अग्रीमेंट में लिखी अवधि से पहले किराएदार को तब तक नहीं निकाला जा सकता, जब तक उसने लगातार कई महीनों तक किराया न दिया हो या वह प्रॉपर्टी का दुरुपयोग कर रहा हो।
- अगर रेंट अग्रीमेंट खत्म होने के बाद भी वह मकान खाली नहीं कर रहा है तो मकान मालिक को दुगना मासिक किराया मांगने का अधिकार है।
- किरायेदार के लिए यह जरूरी है कि वह घर छोड़ने से पहले मकान मालिक को एक महीने का नोटिस दे।
- रेंट अग्रीमेंट के दौरान अगर किरायेदार की मौत हो जाए तो? इसके लिए ड्राफ्ट में कहा गया है कि अग्रीमेंट उसकी मौत के साथ ही खत्म हो जाएगा। लेकिन अगर उसके साथ परिवार भी है तो किरायेदार के अधिकार उसकी पत्नी या बच्चों के पास चले जाएंगे।
- ड्राफ्ट में केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से कहा गया है कि वह किराया विवाद निपटाने वाली अदालतों, प्राधिकरण या अधिकरण का गठन करें। आप किराये से संबंधित विवाद निपटाने के लिए सिविल अदालतों का रुख नहीं कर सकते।
Published on:
14 May 2018 04:03 pm
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