
college ragging
सुप्रीम कोर्ट के पैनल का अध्ययन
नई दिल्ली. क्या आप जानते हैं कि देशभर में 84 फीसदी छात्र रैगिंग की रिपोर्ट ही नहीं करना चाहते हैं। यह खुलासा सुप्रीम कोर्ट के पैनल द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है। वहीं लगभग 36 फीसदी छात्रों का मानना है कि रैगिंग से उन्हें दुनिया का कटु सत्य पता चलता है। जबकि 32 फीसदी इसे इंज्वॉय के रूप में लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक पैनल के मनोवैज्ञानिक अध्ययन में बाते सामने आई हैं।
देशभर के 10632 छात्र अध्ययन में हुए शामिल
सुप्रीम कोर्ट के पैनल द्वारा किए गए अध्ययन को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (यूजीसी) ने जारी किया है। पैनल ने अपने अध्ययन देशभर के 10632 छात्रों को शामिल किया और उनसे बातचीत की। सुप्रीम कोर्ट के पैनल में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हैल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के विशेषज्ञ शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के पैनल से कई छात्रों ने कहा कि वह रैगिंग को उत्पीडऩ नहीं मानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने कहा- रैगिंग की स्वीकार्यता बढ़ी
सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने अपने अध्ययन में पाया कि शिक्षा संस्थानों और समाज में बड़े पैमाने पर इसकी स्वीकार्यता बढ़ी है। लगभग 40 फीसदी छात्रों ने बताया कि इससे कॉलेज में दोस्ती करने में मदद मिलती हैं। वहीं 62 फीसदी ने कहा कि जो सीनियर रैगिंग लेते हैं वे बाद में अध्ययन और कॉलेज में अनेक प्रकार से मदद करते हैं।
अध्ययन में देशभर के 37 कॉलेज हुए शामिल
सुप्रीम कोर्ट के पैनल द्वारा किए गए इस अध्ययन में देशभर के ३७ कॉलेजों ने भाग लिया। कई छात्र इसे परंपरा के रूप में देखते हैं और चाहते हैं कि यह आगे भी जारी रहे। वहीं 35.1 फीसदी छात्रों ने मामूली रैगिंग होने की बात स्वीकारी जबकि 4.1 छात्रों ने गंभीर रैगिंग का उल्लेख किया।
33 फीसदी ने कहा कि वे रैगिंग का आनंद उठाते हैं
जब छात्रों से पैनल ने रैगिंग के दौरान उनके भावनात्मक अनुभवों के बारे में पूछा तो उनकी प्रतिक्रिया चौंकाने वाली थी। 33 फीसदी छात्रों ने कहा कि वे रैगिंग का आनंद उठाते हैं जबकि 45.1 फीसदी ने कहा कि उन्हें शुरू में तो काफी खराब लगा बाद लगा कि यह ठीक है। कई छात्रों ने बताया कि जिन सीनियरों ने उनकी रैगिंग ली थी वे बाद में उनके अच्छे दोस्त बन गए।
Published on:
15 Aug 2017 05:53 pm
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