
Chandrashekhar Azad(Image Source-"X')
Chandrashekhar Azad: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में एक प्रमुख नाम है चंद्रशेखर आजाद का। उनका जीवन साहस, त्याग और दृढ़ संकल्प का प्रतीक रहा है। देश की आजादी के लिए उन्होंने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। अंतिम समय तक देश के लिए लड़ते रहें। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्रशेखर आजाद की मां उन्हें क्रांतिकारी नहीं, बल्कि एक संस्कृत के विद्वान (संस्कृत स्कॉलर) के रूप में देखना चाहती थीं। उनका सपना था कि बेटा वेद-पुराणों का ज्ञाता बने और समाज में एक विद्वान ब्राह्मण के रूप में नाम कमाएं।हालांकि किस्मत ने उन्हें एक अलग रास्ते पर मोड़ दिया, जो भारत की आजादी की लड़ाई की तरफ जाता था।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में हुआ था। उनका नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और मां का नाम जगरानी देवी था। आजाद मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से थे, लेकिन रोजगार के लिए उनके पिता मध्य प्रदेश चले आए थे। उनका परिवार ब्राह्मण परंपरा को मानने वाला था। उनकी मां जगरानी देवी एक धार्मिक महिला थीं, जिनकी इच्छा थी कि उनका बेटा वेदों का अध्ययन करे और संस्कृत का ज्ञाता बने।
अपने बेटे को एक आदर्श विद्वान बनाने की इच्छा से आजाद की मां जगरानी देवी ने उन्हें वाराणसी (बनारस) भेजा, जो उस समय भारत में संस्कृत शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। वाराणसी के विद्याश्रम में चंद्रशेखर ने पढ़ाई शुरू की। वहां वे वेद, संस्कृत भाषा, और हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन कर रहे थे। शिक्षा के प्रति उनका समर्पण अच्छा था, लेकिन उनके भीतर राष्ट्र के प्रति प्रेम और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की भावना भी धीरे-धीरे जागने लगी थी।
वाराणसी में रहकर चंद्रशेखर आजाद को क्रांतिकारी गतिविधियों की जानकारी मिलने लगी। उस समय बनारस क्रांतिकारी विचारों का गढ़ बन चुका था। वहां से निकलने वाले समाचार पत्रों, भाषणों और छात्रों की चर्चाओं ने उनके भीतर देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना को और तेज कर दिया। यहीं पर उन्होंने यह महसूस किया कि केवल धर्मग्रंथों को पढ़ना काफी नहीं है, जब तक देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है। चंद्रशेखर आजाद ने 15 वर्ष की उम्र में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। 1921 में वे इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हो गए। जब उन्हें अदालत में पेश किया गया, तो जज के सवालों का जवाब उन्होंने पूरे आत्मविश्वास और व्यंग्यात्मक अंदाज में दिया। नाम पूछा गया तो बोले, "आज़ाद", पिता का नाम – "स्वतंत्रता", और पता – "जेल"। उस दिन से वे चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर ‘आजाद’ बन गए।
आजाद की पढ़ाई वहीं पर रुक गई। वाराणसी में संस्कृत की शिक्षा अधूरी रह गई, क्योंकि उनका मन पूरी तरह से आजादी के आंदोलन में रम गया था। पढ़ाई छोड़कर वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हो गए, जो बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) बना। राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने कई साहसिक कार्य किए।
Updated on:
04 Aug 2025 03:28 pm
Published on:
04 Aug 2025 03:26 pm
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