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भारतीय संविधान देता है मौलिक अधिकार, इन पर भी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं प्रश्न

भारतीय संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे।

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जयपुर

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Sunil Sharma

Dec 16, 2018

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मौलिक अधिकार मानव जीवन के स्वतंत्र विकास व जीवनयापन के लिए जरूरी अधिकार हैं। भारतीय संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे। लेकिन 44वें संविधान संशोधन-1978 द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा कर इसे संविधान में अनुच्छेद 300-क के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है। वर्तमान में निम्नलिखित 6 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं-

1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
6. संविधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

मौलिक अधिकारों की विशेषताएं-
(1) संविधान के भाग 3 को "भारत का मैग्नाकार्टा" की संज्ञा दी गई है।
(2) 'मैग्नाकार्टा' अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मूल अधिकारों से सम्बंधित पहला लिखित प्रपत्र था।
(3) भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकार अमरीकी संविधान से प्रभावित हैं।
(4) इन अधिकारों में से कुछ सिर्फ नागरिकों के लिए हैं जबकि कुछ अन्य सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हैं।
(5) ये असीमित नहीं है, लेकिन वाद योग्य हैं। राज्य इन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। संसद इनमें कटौती या कमी कर सकती है। -इन अधिकारों का उल्लंघन होने पर अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय व अनु.32 के तहत उच्चतम न्यायालय जाया जा सकता है।
(6) उपर्युक्त दोनों अनुच्छेदों 226 और 32 के तहत उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय द्वारा रिट जारी की जा सकती हैं। ये हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण, अधिकार पृच्छा व अन्य।
(7) मौलिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार स्वयं में ही एक मौलिक अधिकार है। अत: अनुच्छेद 32 को मौलिक अधिकारों का मौलिक अधिकार कहते हैं।
(8) डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान की आत्मा और हृदय कहा है।

अन्य अनुच्छेद
(1) अनुच्छेद 13- राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा, जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है। इनके उल्लंघन में बनाई गई विधि शून्य होगी। लेकिन अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन पर लागू नहीं होगी।
(2) अनुच्छेद 33 - सशस्त्र बलों, अद्र्ध सैनिक बलों, पुलिस बलों जैसी लोक व्यवस्था बनाए रखने वाली सेवाओं के सदस्यों पर संसद प्रतिबंध आरोपित कर सकती है।
(3) अनुच्छेद 34 - जब किसी क्षेत्र में फौजी कानून प्रवृत हो तो मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
(4) अनुच्छेद 35 - इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान बनाने की शक्ति संसद को होगी। किसी राज्य के विधानमंडल को
नहीं होगी।

मौलिक अधिकारों से संबंधित वाद
गोलकनाथ वाद -1967 : इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संसद को मूल अधिकारों को समाप्त करने की शक्ति नहीं है।
केशवानंद भारती वाद - 1973 : इसमें गोलकनाथ वाद के निर्णय को पलट दिया गया और कहा गया कि संसद को अधिकार है कि वह मौलिक अधिकारों को कम कर सकती है। लेकिन संविधान के मूल ढांचे को समाप्त नहीं कर सकती। इस वाद ने "मूल ढांचे" का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
मिनर्वा मिल्स वाद -1980 : संविधान का मूल ढांचा न्यायिक समीक्षा से बाहर है।

एक्सपर्ट टिप्स
मौलिक अधिकार भारतीय संविधान का प्रमुख भाग है और परीक्षा की दृष्टि से सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। मौलिक अधिकारों पर बहुत ज्यादा सामग्री है जिसका सम्पूर्ण उल्लेख यहां सम्भव नहीं है। अत: मौलिक अधिकारों का अच्छे से अध्ययन करें। इस भाग में से प्रश्न लगभग हर प्रकार की परीक्षा में पूछे जाते हैं।