
फेल नहीं करने की नीति से बच्चे बने नाकाम
धीरज कुमार
नई दिल्ली। एक ताजा सरकारी आकलन में पाया गया है कि इस समय दसवीं कक्षा में पढ़ रहे छात्र विषयों की समझ के मामले में तीसरी, पांचवीं और आठवीं के छात्रों से भी कमजोर हैं। इन छात्रों की पढ़ाई में इतना कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह बीते वर्षों में लागू रही परीक्षा नहीं लेने की नीति को माना जा रहा है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से किए गए नेशनल अचीवमेंट सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है। इसमें पाया गया है कि छात्र बड़ी कक्षाओं में चले जाते हैं लेकिन सीखने और पढऩे की उनकी क्षमता कम ही रह जाती है। नतीजा यह होता है कि दसवीं कक्षा में पास होने के लिए छात्रों को न्यूनतम 40 फीसदी हासिल करना भी मुश्किल हो जाता है। छात्रों को गणित, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और अंग्रेजी के प्रश्र देना भारी पड़ जाता है।
फरवरी, 2018 में हुआ यह सर्वेक्षण 15 लाख बच्चों में किया गया था। इस दौरान तीसरी कक्षा के 64 फीसदी बच्चों ने गणित के सवाल सही दिए। मगर दसवीं कक्षा में यह प्रतिशत घटकर सिर्फ 40 फीसदी रह गया। वहीं पांचवीं कक्षा में यह प्रतिशत 52 और आठवीं कक्षा में 42 फीसदी का रहा।
अंग्रेजी में हालत सबसे ज्यादा तंग
अंग्रेजी में तो हालत सबसे खराब दिखे। सर्वेक्षण के बाद मानव संसाधन मंत्रालय में यह विचार किया जा रहा है कि बच्चों को फेल नहीं करने की नीति से न सिर्फ छात्र पढ़ाई को लेकर लापरवाह हो रहे हैं, बल्कि अध्यापक भी बच्चों को पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इस नीति के लागू होने से पहले अध्यापक छात्रों को पढ़ाने के लिए मेहनत करवाते थे। साथ ही खुद भी मेहनत करते थे। लेकिन इस दौरान अध्यापकों को लगा कि बिना प्रोत्साहन के क्यों मेहनत करना। नेशनल अचीवमेंट सर्वे में देश भर के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों को शामिल किया गया है। इसमें गणित, भाषा, विज्ञान और समाज विज्ञान जैसे विषयों के प्रश्न पूछे गए थे।
Published on:
28 May 2018 05:13 pm
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