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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को शिक्षा में नवाचार पर जोर दिया और कहा कि इसका उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बिना उद्देश्य की शिक्षा केवल सर्टिफिकेट को अपनी दीवार पर टांगने के समान है। 'कांफ्रेंस ऑन एकेडमिक लीडरशिप ऑन एजुकेशन फॉर रिसर्जेंस' का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने शिक्षा के तत्व के रूप में स्वामी विवेकानंद द्वारा आत्मनिर्भरता, चरित्र-निर्माण और मानव मूल्यों पर जोर दिए जाने का याद किया।
मोदी ने 350 उच्च शिक्षा संस्थानों के निदेशकों और कुलपतियों को संबोधित करते हुए कहा, जहां जीवन में कोई नवाचार नहीं होता, वहां प्रगति रुक जाती है। ऐसा कोई समय, काल व प्रणाली नहीं हो सकती, जो नवाचार के बिना आगे बढ़ सके। अगर कोई अपने जीवन में नवाचार लेने में विफल हो जाएगा तो वह जीवन को भार की तरह जीने लगेगा। शिक्षा के 'पुनुरुत्थान' के बारे में उन्होंने कहा कि शिक्षा की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि वह न केवल किसी की जरूरतें पूरी करे, बल्कि समाज के लिए भी उपयोगी हो।
उन्होंने कहा, अगर शिक्षा को बिना किसी उद्देश्य के ग्रहण किया गया, तो यह अपने सर्टिफिकेट को दीवार से टांगने से ज्यादा और कुछ नहीं होगा। भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अधिनियम के बारे में उन्होंने कहा कि वह शिक्षाविदों द्वारा इस सुधार पर चुप्पी से आश्चर्यचकित हैं। यह अधिनियम आईआईएम को खुद अपना पाठ्यक्रम शुल्क, सिलेबस और फैकल्टी की भर्ती का अधिकार देता है।
उन्होंने कहा, मैं आश्चर्यचकित हूं कि कोई भी शिक्षाविद क्यों नहीं इस बारे में बात कर रहा है। आईआईएम के साथ जो सुधार हमने किए हैं, वह भारत के उच्च शिक्षा के इतिहास में अभूतपूर्व हैं। प्रधानमंत्री ने 2022 तक शिक्षा में बुनियादी ढांचे और प्रणालियों के पुनरुद्धार (राइज) के तहत एक लाख करोड़ रुपये निवेश करने का वादा किया, जिसे इसके पहले बजट में घोषित किया गया था।
Published on:
30 Sept 2018 11:26 am
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