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इस स्कूल में फीस के बदले लिया जाता है प्लास्टिक का कचरा

दुनिया में प्लास्टिक की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। सिर्फ भारत में ही प्रतिदिन 26,000 टन का प्लास्टिक कचरा तैयार होता है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए असम के एक स्कूल ने अनोखी पहल की है। यह स्कूल विद्यार्थियों से फीस के बदले प्लास्टिक का कचरा लेता है।

जयपुरSep 10, 2019 / 11:48 am

जमील खान

Plastic as fees

Plastic as fees

दुनिया में प्लास्टिक (Plastic) की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। सिर्फ भारत में ही प्रतिदिन 26,000 टन का प्लास्टिक कचरा तैयार होता है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए असम के एक स्कूल ने अनोखी पहल की है। यह स्कूल विद्यार्थियों से फीस के बदले प्लास्टिक का कचरा लेता है। नीति आयोग (NITI Aayog) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer) (सीईओ) (CEO) अमिताभ कांत (Amitabh Kant) ने भी इस स्कूल की पहल की सराहना की है। उन्होंने सोमवार को एक मीडिया रपट को रीट्वीट करते हुए इस पहल को शानदार बताया है।

सोशल वर्क में स्नातक परमिता शर्मा और माजिन मुख्तार ने उत्तर पूर्वी असम में पमोही नामक गांव में तीन साल पहले जब अक्षर फाउंडेशन स्कूल स्थापित किया, तब उनके दिमाग में एक विचार आया कि वे विद्यार्थियों के परिजनों से फीस के बदले प्लास्टिक का कचरा देने के लिए कहें। मुख्तार ने भारत लौटने से पहले अमेरिका में वंचित परिवारों के लिए काम करने के लिए एयरो इंजीनियर का अपना करियर छोड़ दिया था। भारत आने पर उनकी मुलाकात शर्मा से हुई।

वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम की वेबसाइट पर प्रकाशित रपट के अनुसार, दोनों ने साथ मिलकर इस विचार पर काम किया। उन्होंने प्रत्येक विद्यार्थी से एक सप्ताह में प्लास्टिक की कम से कम 25 वस्तुएं लाने का आग्रह किया। फाउंडेशन यद्यपि एक चैरिटी है और डोनेशन से चलता है, लेकिन उनका कहना है कि प्लास्टिक के कचरे की ‘फीसÓ सामुदायिक स्वामित्वक की भावना को प्रोत्साहित करती है। स्कूल में अब 100 से ज्यादा विद्यार्थी हैं। इस फीस से न सिर्फ स्थानीय पर्यावरण सुधारने में मदद मिल रही है, बल्कि इसने बालश्रम की समस्या को सुलझा कर स्थानीय परिवारों के जीवन में बदलाव लाना भी शुरू कर दिया है।

स्थानीय खदानों में लगभग 200 रुपए प्रतिदिन पर मजदूरी करने के लिए स्कूल छोडऩे के बजाय, वरिष्ठ विद्यार्थी अब स्कूल के छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और इसके लिए उन्हें रुपये मिलते हैं। उनकी अकादमिक प्रगति के साथ उनका मेहनताना भी बढ़ जाता है। इस तरीके से परिवार अपने बच्चों को लंबे समय तक स्कूल में रख सकते हैं। इससे न सिर्फ वे धन प्रबंधन सीखते हैं, बल्कि उन्हें शिक्षा के आर्थिक लाभ की व्यवहारिक जानकारी भी मिल जाती है। महात्मा गांधी के प्राथमिक शिक्षा के दर्शन से प्रेरित होकर अक्षर के पाठ्यक्रम में पारंपरिक शैक्षणिक विषयों के साथ-साथ व्यवहारिक प्रशिक्षण को भी शामिल किया गया है।

व्यवहारिक शिक्षा में सौर पैनल स्थापित करना और उन्हें संचालित करना सीखना तथा स्कूल के लैंडस्केपिंग बिजनेस को चलाने में मदद करना सीखना शामिल है। लैंडस्केपिंग बिजनेस के जरिए स्थानीय सार्वजनिक स्थलों को सुधारा जाता है। स्कूल ने विद्यार्थियों की डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए उन्हें टैबलेट कम्प्यूटर और इंटरैक्टिव लर्निंग सामग्री उपलब्ध कराने के लिए एक एजुकेशन टेक्रॉलजी चैरिटी के साथ साझेदारी की है।

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