
IAS Success Story:“हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है”, शकील आज़मी का लिखा ये शेर होनहार और तेज तर्रार आईएएस रमेश घोलप पर बिलकुल फिट बैठता है। उनकी कहानी असामान्य है, लेकिन सच है। रमेश ने बचपन में गरीबी और पोलिया का दंश झेला। लेकिन कठिन परिस्थितियों के बावजूद उनके हौसले कभी कम नहीं हुए। आइए, जानते हैं उनकी सक्सेस स्टोरी
रमेश घोलप (IAS Ramesh Gholap) महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया। आर्थिक तंगी और गरीबी में बचपन बीता। पिता का साया सिर से हटने के बाद मां ने पेट पालने के लिए हर संभव कोशिश की। रमेश की मां सड़कों पर चूड़ियां बेचा करती थीं। रमेश भी चूड़ियां बेचने में अपनी मां की मदद किया करते थे। इतना सब कम नहीं था, जिंदगी को उनका एक और इम्तिहान लेना था। पोलिया के कारण रमेश ने अपना एक पैर खो दिया। पैसे की तंगी के कारण इलाज नहीं हो पाया। इन परिस्थितियों के बावजूद रमेश घोलप ने कभी हार नहीं मानी। अपने दृढ़निश्चय और मेहनत के दम पर 2012 में सिविल सेवा परीक्षा में 287वां स्थान हासिल किया।
रमेश की प्रारंभिक पढ़ाई गांव से हुई। आगे की पढ़ाई के लिए वे अपने चाचा के घर चले गए। रमेश जब 12वीं में थे तो उनकी पिता की मृत्यु हो गई। चाचा के घर से खुद के घर आने के 7 रुपये लगते थे। रमेश विकलांग थे तो उनके लिए केवल 2 रुपये का किराया था, लेकिन तंगी इतनी थी कि उनके पास 2 रुपये भी नहीं थे।
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12वीं की पढ़ाई के बाद रमेश ने डिप्लोमा किया और घर की जिम्मेदारी में हाथ बटाने लगे। उन्होंने गांव में ही पढ़ाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उन्होंने बीए की डिग्री पूरी कर ली। फिर उनके मन में सिविल सेवा का ख्याल आया। यूपीएससी सीएसई (UPSC CSE) की तैयारी के लिए उन्होंने 6 महीने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। पहली बार वर्ष 2010 में यूपीएससी की परीक्षा दी थी, जिसमें वे असफल रहे। इसके बाद मां ने गांव वालों से कुछ पैसे उधार लेकर रमेश को पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया।
पुणे जाने के बाद रमेश ने बिना कोचिंग के यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। कड़ी मेहनत, लगन और परिश्रम के बाद आखिरकार उन्होंने 2012 में सिविल सर्विस परीक्षा क्रैक कर ली। 287 रैंक हासिल करके विकलांग कोटा के तहत रमेश घोलप आईएएस ऑफिसर बन गए।
Published on:
07 Oct 2024 10:55 am
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