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सरकारी स्कूलों में शिक्षा का ये हाल: 57 स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई एक शिक्षक के भरोसे, चार स्कूल तो शिक्षक विहीन ही

स्कूलों के पट खुले माहभर से ज्यादा का समय बीत गया, लेकिन जिले में अभी तक शिक्षा विभाग के आला अधिकारी एकल शिक्षकीय वाले विद्यालयों में शिक्षकों की व्यवस्था नहीं कर पाया। आज भी इन स्कूलों में शिक्षक पांच-पांच क्लास के बच्चों को अकेले पढ़ाने मजबूर हैं।

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जिले में 57 स्कूल अब भी एकलीय शिक्षक, एक शिक्षक पढ़ा रहे पांच क्लास के बच्चों को

ऐसे में कहीं एक ही कमरे में पांच क्लास के बच्चों को बिठाकर पढ़ाया जा रहा है तो कहीं एक कमरे में पढ़ाई होती रहती है तो दूसरे कमरे के बच्चों को पढ़ाने-लिखाने वाला कोई नहीं रहता। पढ़ाई एक तरह से भगवान भरोसे होती है। इन हालातों में सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कैसे ऊपर जाएगा, इस पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। एक माह की पढ़ाई ऐसे ही बीत गई। एक ओर तो जिला प्रशासन शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने नए-नए अभियान चलाकर शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने का ढिंढोरा पीट रहा है पूर दूसरी ओर धरातल में ऐसी तस्वीरें सामने आ रही है जिससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सरकारी स्कूलों में शिक्षा में गुणवत्ता आएगी भी तो कैसी।

57 स्कूलों में पढाई एक शिक्षक के कांधे पर

जांजगीर-चांपा जिले की बात करें तो डीईओ आफिस के मुताबिक, वर्तमान में जांजगीर-चांपा जिले में आज भी 57 स्कूल एकल शिक्षकीय है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति पामगढ़ ब्लॉक में है। यहां 21 स्कूल एक शिक्षकों के भरोसे संचालित हो रहे हैं। इसी तरह नवागढ़ विकासखंड में 12 स्कूल एकल शिक्षकीय है। इसके अलावा बम्हनीडीह विकासखंड में 11, अकलतरा विकासखंड में 6 और बलौदा विकासखंड में 7 विद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई एक शिक्षकों के कंधों पर टिकी हुई है। इसी तरह चार स्कूल शिक्षक विहीन है जहां भी नया शिक्षा सत्र शुरू होने के माहभर बाद भी शिक्षकों की व्यवस्था नहीं हुई।

एकल शिक्षकीय होने से कई तरह के नुकसान

एक शिक्षक होने के चलते बच्चों की पढ़ाई कई तरह से प्रभावित हो रही है। पांचों क्लास के बच्चे साथ-साथ बैठने मजबूर हैं, समय से पहले बच्चों को छुट्टी दे दी जा रही है। कई पढ़ाई केवल मध्याह्न भोजन तक सिमट गई है। स्कूल बंद होने से पहले ही ताला लग जा रहा है। इसकी पीछे वजह पूछने पर शिक्षकों का रटारटाया जवाब मिलता है कि स्कूल संचालन, बच्चों को पढ़ाने के अलावा कार्यालयीन काम भी उन्हें ही करना होता है। इसके लिए डीईओ आफिस से लेकर बीईओ आफिस, बीआरसी, संकुल तक उन्हें खुद जाना पड़ता है। समय पर यह काम होना जरूरी होता है। ऐसे में क्या कर सकते हैं। बच्चों को स्कूल टाइम से पहले छुट्टी देना पड़ता है। पत्रिका की टीम ने जब एकलीय शिक्षक कुछ स्कूलों का दौरा किया तो यह नजारा देखने को मिला कि स्कूल बंद होने का समय शाम 4 बजे तय है लेकिन दोपहर 1-2 बजे के बीच ही ताला लटका था।

प्रारंभिक शिक्षा ही नींव तो यह हाल क्यों

एक ओर प्रारंभिक शिक्षा को ही पढ़ाई की नींव मानी जाती है तो दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में प्रारंभिक शिक्षा का हाल ही सबसे खराब है। प्रारंभिक शिक्षा को मजबूत करने के दावे केवल कागजी निकल रहे हैं। जिले में शिक्षा का स्तर कैसा है, इस साल भी बोर्ड एग्जाम में नजर आ सका है। जिले का परीक्षाफल निराशाजनक रहा। इसके बाद भी शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने कोई सार्थक परिणाम नजर नहीं आ रहा। स्कूल खुले एक माह बीत जाने के बाद भी एकल शिक्षकीय स्कूलों में शिक्षकों की कमी तक जिम्मेदार दूर नहीं कर पाए इससे बड़ी विडंबना क्या होगी।

एकल शिक्षकीय विद्यालयों में जल्द ही अन्य शिक्षकों की व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए सभी बीईओ को निर्देशित किया जा चुका है। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होने देंगे।
अश्वनी भारद्वाज, डीईओ


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