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Bihar: क्या आपको पता है इस सवाल का जवाब, कौन थे बिहार के पहले शिक्षा मंत्री?

आचार्य बदरीनाथ वर्मा का जन्म बिहार के एक शिक्षित परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें पढ़ाई के प्रति गहरी रुचि थी। उन्होंने पारंपरिक भारतीय शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षण पद्धतियों का भी अध्ययन किया।

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पटना

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Anurag Animesh

Oct 10, 2025

Bihar

Bihar(Image-BSEIDC)

भारत के इतिहास में बिहार का योगदान केवल राजनीति या समाज सुधार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी यह भूमि हमेशा अग्रणी रही है। सामाजिक और सांस्कृतिक समाज के साथ-साथ राजनीति में भी काफी विद्वान लोगों का हस्तक्षेप रहा है। बिहार के पहले शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा इसी परंपरा के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने न सिर्फ राज्य की शिक्षा व्यवस्था की नींव मजबूत की, बल्कि अपने विचारों और कार्यों से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा-स्रोत बन गए। बिहार के पहले शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ थे। उन्होंने 1946 में बिहार की पहली निर्वाचित सरकार में शिक्षा मंत्री का पद संभाला था।

Bihar के पहले मुख्यमंत्री


आचार्य बदरीनाथ वर्मा का जन्म बिहार के एक शिक्षित परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें पढ़ाई के प्रति गहरी रुचि थी। उन्होंने पारंपरिक भारतीय शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षण पद्धतियों का भी अध्ययन किया। यही बाद में उनके शैक्षिक दृष्टिकोण की प्रमुख पहचान बना। वे मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करना नहीं, बल्कि व्यक्ति में चरित्र, नैतिकता और सामाजिक चेतना का विकास करना होना चाहिए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब बिहार में नई सरकार का गठन हुआ, तब शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी आचार्य बदरीनाथ वर्मा को सौंपी गई। बतौर बिहार के पहले शिक्षा मंत्री, उन्होंने राज्य में शिक्षा के प्रसार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के ढांचे में सुधार की दिशा में काम किया। ग्रामीण इलाकों में विद्यालयों की संख्या बढ़ाने, शिक्षकों की भर्ती में पारदर्शिता लाने और शिक्षा को सभी वर्गों तक पहुंचाने पर विशेष जोर दिया।

विचारक, साहित्यकार और समाज सुधारक भी थे


उनकी नीतियों के तहत बिहार में अनेक सरकारी विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि गरीब और पिछड़े तबके के बच्चे भी शिक्षा से वंचित न रहें। आचार्य बदरीनाथ वर्मा का मानना था कि जब तक समाज का अंतिम व्यक्ति शिक्षित नहीं होगा, तब तक सच्चे अर्थों में लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के अलावा वे एक विचारक, साहित्यकार और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति, नैतिकता पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया। वे इस बात के पक्षधर थे कि आधुनिक विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के साथ भारतीय मूल्य और संस्कृति का समन्वय बनाए रखा जाए।