वोट प्रतिशत बना चुनाव निशान छिनने की वजह बता दें कि शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश यादव से अनबन के बाद 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई और साल भर बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी को चुनाव आयोग ने चुनाव चिह्न चाबी आवंटित किया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में प्रसपा को महज 0.31 प्रतिशत वोट ही मिले। ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनाव में यह सिंबल चुनाव आयोग ने प्रसपा से छीन कर जननायक जनता पार्टी के हवाले कर दिया है। जननायक जनता पार्टी हरियाणा की राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में आयोग में पंजीकृत है। ऐसे में अब आयोग प्रसपा को यूपी विधानसभा चुनाव के लिए ‘चाबी’ चुनाव चिह्न आवंटित नहीं कर रहा है। लिहाजा रजिस्ट्रीकृत मान्यता प्राप्त दल में शामिल प्रसपा को 197 मुक्त चुनाव चिन्हों में से कोई नया आवंटित होगा। ये प्रसपा के लिए चुनौती भरा होगा क्योंकि पिछले दो साल से पार्टी चाबी चुनाव चिन्ह को लेकर ही प्रचार कर रही है। ऐसे में अब नए चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरना आसान न होगा। इस सूरत में प्रसपा के लिए एक ही विकल्प है कि वो सपा के चुनाव निशान साइकिल पर सवार हो कर मैदान में उतरे।
तो ये है प्रसपा-सपा गठबंधन का खेल इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अखिलेश यादव ने सोची समझी रणनीति के तहत ही प्रसपा का सपा में विलय कराने की जगह गठबंधन किया। वजह साफ है कि विलय होने की सूरत में प्रसपा के नेताओं को भी अखिलेश को सपा में समायोजित करना पड़ता और ये टेढी खीर होता। मौजूदा हालात में अखिलेश यादव को केवल गठबंधन की सीटें ही प्रसपा के साथ शेयर करनी होंगी।