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UP Assembly Elections 2022 : कल्याण की राह से ही होगा भाजपा का ‘कल्याण’, 2022 में सोशल इंजीनियरिंग व हिंदुत्व पर फोकस

UP Assembly Elections 2022- कल्याण सिंह की राह से ही होगा भाजपा का ‘कल्याण’, पीएम-सीएम सब कह रहे पूरा करेंगे कल्याण का सपना

Aug 23, 2021 / 03:32 pm

Hariom Dwivedi

UP Assembly Elections 2022 bjp will focus on hindutva and social engineering like kalyan singh

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लखनऊ. UP Assembly Elections 2022- भारतीय जनता पार्टी (BJP) एक बार फिर यूपी में 1991 की चुनावी रणनीति को दोहराना चाहती है। सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) और हिंदुत्व (Hindutva) की राजनीति के बूते कल्याण सिंह (Kalyan Singh) भाजपा को 221 सीटें दिलाईं थी और यूपी में भाजपा की पहली सरकार बनी थी। रविवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा अपने सभी कार्यक्रम निरस्त कर लखनऊ पहुंचे। संघ के कई पदाधिकारियों और दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों ने भी उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस मौके पर पीएम मोदी हों या फिर सीएम योगी, सभी ने कल्याण सिंह के सपनों को पूरा करने का संकल्प दोहराया। उनके रास्ते पर चलने की बात कही। यही इस बात का संकेत है भाजपा कल्याण की राह पर चलकर 2021 में अपना कल्याण करना चाहती है।

कल्याण सिंह ने गोविंदाचार्य के सोशल इंजीनियरिंग के मूलमंत्र को साधते हुए बीजेपी के साथ पिछड़ी जातियों को जोड़ा था। भाजपा पर लगे ब्राह्मण, ठाकुर और बनियों की पार्टी का ठप्पा भी उन्होंने हटाया और पिछड़ों की पार्टी में तब्दील कर दिया। जब उन्होंने अपनी सियासी पारी का आगाज किया तब यूपी में ओबीसी सियासत करवट ले रही थी। कल्याण सिंह पहले नेता थे जिन्होंने अपनी 3 फीसदी लोध बिरादरी को गोलबंद करते हुए लोधी वोटरों के एकमुश्त वोट भाजपा की झोली में डाल दिया। लोध के साथ ही कुर्मी मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए प्रेमलता कटियार, विनय कटियार, ओमप्रकाश सिंह और संतोष गंगवार जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया। राममंदिर आंदोलन के बाद प्रखर हिंदूवादी नेता के तौर पर उनकी पहचान बननी शुरू हुई। जातीय गोलबंदी और हिंदुत्व की चासनी ने भाजपा की रफ्तार तेज कर दी।
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कल्याण के समकक्ष अब कोई नेता नहीं
अब जबकि, यूपी मे सात महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, भाजपा के पास कल्याण सिंह के कद का पिछड़ी जातियों में कोई नेता नहीं है। भाजपा को चिंता इसी बात की है। जातीय समीकरण के साथ हिंदुत्व की राजनीति को परोसने में कल्याण का कोई सानी नहीं था। इसी रणनीति के सहारे उन्होंने मंडल की राजनीति में कमंडल का पानी फेर दिया था। कमोबेश, एक फिर पिछड़ों के नाम पर राजनीतिक गोलबंदी हो रही है। यही वजह है कि पिछड़ों के सर्वमान्य नेता रहे कल्याण के नाम पर चुनावी रणनीति बनाने की योजना पर भाजपा काम कर रही है।

सहानुभूति बदले लहर में
लोधी वोटर बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी के कई जिलों में मजबूत स्थिति में हैं। रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा में तो लोध मतदाता 5 से 10 फीसदी तक हैं। यहां के वोटरों में कल्याण सिंह के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। लोध किसान जाति है। किसान भाजपा से नाराज चल रहे हैं। कल्याण के निधन से उपजी सहानुभूति लहर को पार्टी भुनाना चाहती है। इसलिए अटल स्मृति यात्रा की तरह कल्याण स्मृति यात्रा निकालने की भी योजना है।

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