मुलायम के गढ़ में कल्याण सिंह को सुनने दौड़े चले आते थे लोग, चुनाव में बीजेपी को मिलता था फायदा
कल्याण के समकक्ष अब कोई नेता नहीं
अब जबकि, यूपी मे सात महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, भाजपा के पास कल्याण सिंह के कद का पिछड़ी जातियों में कोई नेता नहीं है। भाजपा को चिंता इसी बात की है। जातीय समीकरण के साथ हिंदुत्व की राजनीति को परोसने में कल्याण का कोई सानी नहीं था। इसी रणनीति के सहारे उन्होंने मंडल की राजनीति में कमंडल का पानी फेर दिया था। कमोबेश, एक फिर पिछड़ों के नाम पर राजनीतिक गोलबंदी हो रही है। यही वजह है कि पिछड़ों के सर्वमान्य नेता रहे कल्याण के नाम पर चुनावी रणनीति बनाने की योजना पर भाजपा काम कर रही है।
सहानुभूति बदले लहर में
लोधी वोटर बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी के कई जिलों में मजबूत स्थिति में हैं। रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा में तो लोध मतदाता 5 से 10 फीसदी तक हैं। यहां के वोटरों में कल्याण सिंह के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। लोध किसान जाति है। किसान भाजपा से नाराज चल रहे हैं। कल्याण के निधन से उपजी सहानुभूति लहर को पार्टी भुनाना चाहती है। इसलिए अटल स्मृति यात्रा की तरह कल्याण स्मृति यात्रा निकालने की भी योजना है।