
UP Assembly Elections 2022: पूर्वांचल में विकास का मुद्दा गायब, गरीबी पर भी कोई बात नहीं
UP Assembly Elections 2022: समाजवादी चिंतक जनेश्वर मिश्र कहते थे-पूर्वांचल को बादशाहत की बीमारी लग गयी है। यहां के लोग बादशाह की बात करते हैं। यहां की जनता ने एक नहीं आधा दर्जन से अधिक प्रधानमंत्री देश को दिए हैं। राजनीति के लिए यह उर्वर भूमि रही हो। दस्यु सुंदरी फूलन देवी से लेकर कांशीराम तक को राजनीतिक जमीन यही मिली। सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर हों या फिर अपना दल की अनुप्रिया पटेल, पूर्वाचल की राजनीति से ही यह केंद्र और राज्य में मंत्री बन गए। निषाद पार्टी के डॉ. संजय निषाद को भारतीय राजनीति के चाणक्य अमित शाह जैसे प्रभावशाली राजनेता से पॉलिटिकल बारगेनिंग की पॉवर पूर्वांचल की जमीन से ही मिली। लेकिन, यहां की धरती और यहां के मतदाता खुद की आर्थिक जमीन मजबूत नहीं कर पाए। वाराणसी हो या फिर गोरखपुर लोग सिर्फ इसलिए खुश हैं कि वे देश को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री देते हैं। गौतम बुद्ध से लेकर महावीर जैन और भगवान राम की जन्मस्थली वाले इस इलाके की पहले धार्मिक बादशाहत थी अब राजनीतिक बादशाहत में यहां का डंका बज रहा है। उससे तेज टंकार यहां की गरीबी की है। लेकिन, गरीबी और पलायन चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है।
यूपी के 10 सबसे गरीब जिले पूर्वांचल में
यूपी सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वांचल के 28 जिलों की सालाना प्रति व्यक्ति आय महज 13,058 रुपये है। यह यूपी की प्रति व्यक्ति आय 18,249 रुपये की तीन-चौथाई और देश की प्रति व्यक्ति आय 38,048 रुपए की लगभग एक-तिहाई है। यूपी के दस सर्वाधिक गरीब जिलों में पूर्वांचल के नौ जिले शामिल हैं। साक्षरता के लिहाज से प्रदेश का सबसे पिछड़ा जिला श्रावस्ती अब भी यूपी का सबसे गरीब जिला है। यह भी पूर्वांचल का हिस्सा है। छठे और सातवें चरण में सबसे पिछड़े इन्हीं जिलों में वोट पडऩे हैं।
न इंडस्ट्री न ढंग के स्कूल कॉलेज
छठे और सातवें चरण की जिन 111 सीटों पर चुनाव होने हैं वहां न तो कोई ढंग की इंडस्ट्री है और न ही स्कूल-कालेज। बेराजगारी का प्रतिशत भी सबसे ज्यादा इसी इलाके में है। बीएचयू को छोड़ दें तो यहां कोई प्रतिष्ठित संस्थान नही हैं। भदोही में एक कालेज के संचालक वैभव शुक्ला बताते हैं-यूपी के तकनीकी और प्रोफशनल कॉलेज में से 57.95 फीसदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं। पूर्वी यूपी में जो संस्थान हैं वे सरकारी हैं। उनमें न तो शिक्षक हैं और नही ढंग का इंफ्रास्ट्रक्चर। सोनभद्र को छोड़ दें तो पूरा पूर्वांचल औद्योगिक रूप से बंजर है। लेकिन यहां के वोटर्स न इसकी बात करते हैं और न ही राजनीतिक पार्टियां इसे मुद्दा बनाती हैं।
तबाह हो रहा हथकरघा उद्योग
बीएचयू में प्रो. डीएस चौहान कहते हैं, पूर्वांचल हथकरघा और पावरलूम उद्योग का गढ़ है। लेकिन अब यह मर रहा है। इस पूरे इलाके में तीन तरह के बुनकर हैं। एक खादी बुनकर हैं जो हथकरघे से बुनाई करते हैं। दूसरे बनारसी साड़ी बुनकर हैं, वे हथकरघे से बुनाई करते हैं। तीसरे टेक्सराइज मसराइज की साड़ी और दूसरे कपड़ों के बुनकर हैं, जो बिजली से चलने वाले पावरलूम से बुनाई करते हैं। कभी अकेले गोरखपुर में करीब चार लाख बुनकर हुआ करते थे। अब इनमें से महज 50 हजार ही इस धंधे में हैं। वाराणसी और आसपास के इलाके में बनारसी साड़ी के हजारों कारीगर बेरोजगार हैं। यह भी कोई चुनावी मुददा नहीं है।
पूर्वांचल में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर
पूर्वाचल प्रवासी मजदूरों का गढ़ है। गोरखपुर हो या फिर मिर्जापुर पूर्वी यूपी के ढाई करोड़ से अधिक लोग मुंबई, कलकत्ता, दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब, गुजरात और सऊदी अरबिया तक नौकरी करते हैं। कोरोना काल में सबसे ज्यादा पूर्वांचल के मजूदरों ने दुख दर्द झेला। यूपी के सरकारी पोर्टल पर भी 10 लाख से अधिक श्रमिक यहीं के पंजीकृत हैं। लेकिन यह पलायन भी मुद्दा नहीं है। सोनभद्र के केशव चंद मुंबई से मतदान करने आए हैं। वे कहते हैं रोजगार की बात नहीं प्रत्याशी ने खर्च भेजा है, इसी बहाने घर आने का मौका मिला है। इसलिए खर्चे पर वोट करेंगे।
Published on:
03 Mar 2022 08:25 am
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