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Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : कुर्सी सीट पर मोदी लहर ने लहराया था झंडा, अब छीनने की जुगत में विपक्ष, इस दल की एंट्री गुल खिला सकती है

locationलखनऊPublished: Dec 27, 2021 02:08:08 pm

Submitted by:

Shiv Singh

Uttar Pradesh Assembly Election 2022 में असुद्ददीन ओवैसी की पार्टी (एआईएमआईएम) अल्पसंख्यक मतदाताओं के वोट में सेंधमारी कर कोई गुल खिला सकती है।

Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : कुर्सी सीट पर मोदी लहर ने लहराया था झंडा, अब छीनने की जुगत में विपक्ष, इस दल की एंट्री गुल खिला सकती है

Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : कुर्सी सीट पर मोदी लहर ने लहराया था झंडा, अब छीनने की जुगत में विपक्ष, इस दल की एंट्री गुल खिला सकती है

लखनऊ. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi ) की लहर का कमाल था कि बारांबकी जिले की कुर्सी विधानसभा सीट पर उम्मीदवार का चेहरा बदलते ही वर्ष 2017 में भाजपा विनर बन गई।अब चुनावी जंग सीट बरकरार रखने की चल रही है, जबकि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा की राजलक्ष्मी तीसरे पायदान पर थीं और सीट समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री फरीद महफूज किदवई ने जीती थी। अगले चुनाव में असद्ददीन ओवैसी की पार्टी अल्पसंख्यक वोटों में सेंधमारी कर सकती है।
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अब Uttar Pradesh Assembly Election 2022 की बिसात बिछाई जाने लगी है। पार्टियां और नेता सक्रिय हो गए हैं। इस बार भाजपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा समेत कई दलों के नेता संभावित उम्मीदवार के रूप में खुद को पेश कर रहे हैं। शुरू से यह क्षेत्र कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है लेकिन वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर ने इस गढ़ पर भाजपाई ध्वज लहरा दिया। यहां से साकेंद्र प्रताप वर्मा ने 108403(41.49 प्रतिशत) वोट प्राप्त कर निर्वाचित हुए थे जबकि दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के फरीद महफूज किदवई को 79724 ( 30.51 प्रतिशत) वोट मिले। जीत-हार का मार्जिन 28679 मतों का रहा। वर्ष 2012 के चुनाव में यह सीट समाजवादी पार्टी के फरीद महफूज किदवई ने बसपा उम्मीदवार मीता गौतम को परास्त किया था। फरीद महफूज किदवई को तब ८०१८३(३४.१७ प्रतिशत) वोट मिले थे जबकि बसपा की मीता गौतम को 56246(23.97 प्रतिशत) वोट मिले। भाजपा की उम्मीदवार राज लक्ष्मी तीसरे स्थान पर रहीं और उन्हें 34169 ( 14.56 प्रतिशत) वोट मिले थे।
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हालात बदल रहे हैं
Uttar Pradesh Assembly Election 2022 में भाजपा की पूरी कोशिश इस सीट को बनाए रखने की है लेकिन जमीनी हालत वर्ष 2017 जैसे अनुकूल नहीं हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं के अपने दर्द हैं। भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष अब्दुल सलाम का कहना है कि भाजपा विधायक कार्यकर्ताओं की पूछपरख नहीं करते हैं। किसी के सुख-दुख में शरीक नहीं होते हैं। हालांकि ग्राम घुंघटेर के बूथ अध्यक्ष विकास तिवारी अनुज का कहना है कि यहां पिछले चुनाव की तरह इस बार भी मोदी लहर है और पार्टी उम्मीदवार की जीत होगी। छिलगंवा के सेक्टर संयोजक नरेंद्र सिंह का कहना है कि योगी सरकार ने सबका साथ-सबका विकास नारे के साथ काम किया है। Uttar Pradesh Assembly Election 2022 में असुद्ददीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम खेल अल्पसंख्यक मतदाताओं के वोट में सेंधमारी कर कोई गुल खिला सकती है।
क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे
कुर्सी विधानसभा सीट पड़ोस के दो जिलों लखनऊ और सीतापुर को छूती है। इसलिए पास-पड़ोस का भी असर पड़ता है। इस क्षेत्र में एक बड़ी समस्या छुट्टा जानवरों की है, जो फसल बर्बाद कर रहे हैं। सीमावर्ती गांवों में चोरी की घटनाएं अक्सर होती हैं। यहीं के एक गांव में दहेज में मिली भैंस चोरी चली गई। इस भैंस की कीमत 60 हजार रुपए थे। कुर्सी से लेकर बाबा गंज और बजगहनी जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के लिए रोजगार के अवसर कम हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सुविधा नहीं है। डिग्री कॉलेज, पॉलीटेक्निकल, आईटीआई भी नहीं है, जहां युवा अपना कॅरियर बना सकें। लखनऊ से महज 30 किमी दूर पर बसे कुर्सी कस्बे का विकास का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है। इसी विधानसभा क्षेत्र के डॉ.राजेश कुमार का कहना है कि कुर्सी बाराबंकी जिले का आउटर हिस्सा होने का खमियाजा भुगत रहा है।
बन रही चुनावी फिजां
Uttar Pradesh Assembly Election 2022 की तिथियां अभी तक घोषित नहीं हुई हैं लेकिन कुर्सी विधानसभा क्षेत्र में चारों तरफ संभावित उम्मीदवारों के होर्डिंग्स नजर आने लगे हैं। इनमें भाजपा के वर्तमान विधायक साकेंद्र प्रताप वर्मा आगे हैं लेकिन उनके ही दल के कई नेता भी होर्डिंग्स के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। इन्हें लग रहा है कि सीटिंग-गेटिंग का फार्मूला बदल सकता है। समाजवादी पार्टी की ओर से हाजी फरीद महफूज किदवई संभावित उम्मीदवार हैं। वे यहां से एमएलए रह चुके हैं और सपा के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं। वे अपने मंत्रितत्व काल की उपलब्धियां गिना रहे हैं। बसपा, कांग्रेस के उम्मीदवार भी सक्रिय हैं लेकिन ओवेसी की पार्टी की एंट्री विपक्षी दलों का खेल बिगाड़ सकती है।
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