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‘जो गुज़ारी न जा सकी हमसे, हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है’, आज ही के दिन दुनिया को रुखसत कर गए थे जौन एलिया

जौन एलिया के शक्सियत के बारे में एक बात कही जाती है कि वे मंच पर आकर अपने लफ्जों का ऐसा जादू बिखरते थे कि शायरी खत्म हो जाती थी लेकिन सुनने वाले नहीं

Nov 08, 2018 / 10:18 pm

Amit Singh

jaun elia

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जौन एलिया, उर्दू साहित्य का एक ऐसा नाम जो आज भी साहित्य प्रेमियों के जबान पर है। एक ऐसा कलाकार जिसकी रचनाओं ने सीमाओं को लांघ कर अपने कद्रदानों को ढूढ़ा। जवां दिलों की धड़कन को शब्दों में ऐसा पिरोया की सुनने वालों को हमेशा के लिए अपना मुरीद बना लिया। जौन एलिया के शक्सियत के बारे में कहा जाता है कि वे मंच पर आकर अपने लफ्जों का ऐसा जादू बिखरते थे कि शायरी खत्म हो जाती थी लेकिन सुनने वाले नहीं। बिखरे हुए बाल और पतले से चेहरे वाले जौन एलिया आज ही के दिन 8 नवंबर 2002 को दुनिया को रुखसत कर गए थे।

भारत से पाकिस्तान तक

उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पैदा हुए जॉन मशहूर फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के सबसे छोटे भाई थे। इनके बाकी भाई भी जाने-माने विद्वान और पत्रकार रहे। खुद जॉन पाकिस्तान के मशहूर अखबार जंग के संपादक रहे। वैसे तो जॉन शिया थे मगर उनकी शिक्षा सुन्नियों के गढ़ देवबंद में हुई थी। बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। लेकिन जॉन एलिया हिंदुस्तान में ही रहे। वह रिश्ते के चाचा हकीम मीर अहमद के पास रहे। हकीम मीर अहमद के नाती मुजफ्फर अली के मुताबिक जॉन एलिया को हकीम मीर अहमद से काफी लगाव था। वर्ष 1956 में उनके इंतकाल बाद वह पाकिस्तान चले गए। इसी आंगन में उनका बचपन और जवानी के कुद बरस बीते थे। अपने जीवन में अरबी की कई किताबों का अनुवाद जॉन ने उर्दू में किया। हालांकि उनका ज्यादातर काम उनके जीवन में प्रकाशित नहीं हो पाया।

हिंदुस्तान से बरकरार रहा प्रेम

जॉन एलिया पाकिस्तान में बसने के बाद भी उनका हिंदुस्तान प्रेम खत्म नहीं हुआ। वह अमरोहा को भूल नहीं पाए। वह पाकिस्तान जाने के बाद तीन बार अमरोहा आए। वर्ष 1977, 1992 और 1999 में अमरोहा आए। आखिरी बार जब वह 1999 में अमरोहा आए तो उनकी उम्र करीब सत्तर साल थी।

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