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इटावा की पांच नदियों का संगम, क्यों बन रही लोगों की पहली पसंद

कभी कुख्यात डाकुओं की शरण स्थली के रूप में बदनाम रहे पांच नदियों के संगम पंचनदा को अब नई पहचान मिल रही है । देश के विभिन्न हिस्सों में बिगड़े हालत के बीच पंचनदा का नाम सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल को कायम रखने के तौर पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अब लेकर सभी वर्गाे को एक जुट करने में जुट गए है।पांच नदियों के संगम वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले को लेकर के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसा भरोसा है कि इटावा सांप्रदायिक सद्भाव ना तो बिगड़ा है और ना ही आगे बिगड़ेगा।

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File Photo of Tourist visiting in Etawah Five River Sangam

File Photo of Tourist visiting in Etawah Five River Sangam

इटावा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जय प्रकाश सिंह बताते हैं कि इटावा की धरती ऐसी है जहां पर पांच नदियों का संगम होता हो,जिसे पचनदा के नाम से जाना जाता है। ऐसी धरती जहां पर पांच पांच नदियों का संगम हो वहा किसी प्रकार के सांप्रदायिक तनाव की बात हम सपने में भी नहीं सोच सकते है। हम गंगा जमुना संस्कृति की बात करते है यहां तो पांच नदियों का संगम बन रहा है तो ऐसी स्थिति में ऐसी कोई बात नहीं हो सकती है।
इटावा के जिलाधिकारी अवनीश राय कहते है कि देश में बिगड़े हालत के बीच इटावा ने एक नया आयाम तय किया है उम्मीद है कि आगे भी यह आयाम बरकरार रहेगा। इटावा में अमनचैन व आपसी सौहार्द बनाये रखने के उद्देश्य से ऐतिहासिक सनातन धर्म इंटर कालेज में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में पीस कमेटी की बैठक का आयोजन किया गया।


पीस कमेटी की बैठक में जिलाधिकारी अवनीश राय ने कहा कि कोई भी पर्व हो या पिछले दिनों जुमे की नमाज हो जनता ने इंसानियत का जो संदेश दिया और अमनचैन बनाये रखने में सहयोग किया प्रशासन जनता का आभार व्यक्त करता है।
मुफ़्ती सुब्हान दानिश ने कहा कि उदयपुर में जो घटना हुई है हम मुस्लिम समाज की ओर से घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि जिसने घटना को अंजाम दिया उनके खिलाफ ऐसी कार्यवाही हो जिससे देश मे ऐसी घटना की पुनरावर्त्ति न हो।
जिस पांच नदियों के संगम को लेकर सांप्रदायिक सद्भाव की बात पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियो की ओर से कही जा रही है । वो उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर बिठौली गांव में है। यह वह जगह है जो सबसे बेहतरीन पर्यटन स्थल बन सकती है लेकिन अभी तक इस इलाके को सरसव्य करने की दिशा मे कोई सार्थक पहल नही हो पाई है ।
800 ईसा पूर्व पंचनदा संगम पर बने महाकालेश्वर मंदिर पर साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है। मन में आस्था लिए लाखों श्रद्धालु कालेश्वर के दर्शन से पहले संगम में डुबकी अवश्य लगाते हैं। यह देव शनि हैं जहां भगवान विष्णु ने महेश्वरी की पूजा कर सुदर्शन चक्र हासिल किया था। इस देव शनि पर पांडु पुत्रों को कालेश्वर ने प्रकट होकर दर्शन दिए थे। इसलिए हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद को छोड़कर पंचनदा पर कालेश्वर के दर्शन के लिए साधु-संतों की भीड़ जुटती है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने पावन स्थान को यदि उस प्रकार से लोकप्रियता हासिल नहीं हुई जिस प्रकार से अन्य तीर्थस्थलियों को ख्याति मिली तो इसके लिए यहां का भौगोलिक क्षेत्र कसूरवार है। पंचनद के एक प्राचीन मंदिर को बाबा मुकुंदवन की तपस्थली भी माना जाता है। कहें कुछ भी पर पंचनदा को सरसव्य बनाने को लेकर आजादी के बाद लगातार बेरुखी ही दिखाई दे रही है।
यहां पर कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। सारे विश्व में इटावा का पंचनद ही एक स्थल है, जहां पर पांच नदियों का संगम है। जहॉ पर यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज नदियो को मिलन होता है लेकिन यह पंचनद सरकारी अनदेखी के कारण आकर्षण का केंद्र नहीं बन पा रहा हैं। हालांकि पंचनदा को देश का सबसे बड़ा पर्यटन केंद्र बनवाने के लिए चंबल के वाशिंदे अरसे से नेताओं से गुहार लगाते रहे हैं।
चंबल परिवार प्रमुख शाह आलम राना जो चंबल की साकारात्मक पहचान को उभारने के लिए शिद्दत से लगे हुए हैं । कहते हैं कि पांच नदियों का मिलन की तहजीब की शानदार साझी विरासत है। यह भोगौलिक तौर भले यहां पांच नदियों का मिलन होता है लेकिन पंचनद घाटी में कई सांस्कृतियों के मिलन का पुराना इतिहास रहा है।

बाबा मुकुंददास, नबी शाह, मलंगदास, बाबा साहेब जैसे ज्ञानी संतों- ज्ञानियों की एक साथ रहकर समाज को दिशा देने की रवायत आज भी यहां के लोगों की जुबा पर है। जो कि एक नजीर रही है। यहां का सबसे बड़ा स्टेट जगम्मपुर जो कि सेंगर वंश से है जिसका राज सिंह में शेर और बकरी हैं इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है। सूफी फकीर सुल्तान शाह के मुरीद होने से यह सेंगर राज वंश आज भी अपने नाम के टाइटिल में शाह लिखता है। महाराजा जगम्मन शाह, जोगेंद्र शाह, जागेंद्र शाह, महीपत शाह, तखत शाह, बखत शाह, मानवेंद्र शाह, राघवेंद्र शाह, रूप शाह, लोकेंद्र शाह, वीरेंद्र शाह, राजेंद्र शाह, सुक्रीत शाह तक गौरवशाली शाह लिखने की परंपरा आज तक जारी है। महाकालेश्वर मंदिर,पंचनदा-इटावा के अध्यक्ष बापू सुहेल सिंह परिहार कहते हैं कि यह पूरा इलाका ग्वालियर स्टेट के अधीन रहा है। यहां सदियों से लोग मिलजुल कर रहे हैं। आजादी आंदोलन में सभी ने साझे तौर पर अपनी आहुति दी है।

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