
इस अंग्रेज अफसर ने साड़ी पहनकर भारतीय क्रांतिकारियों से बचाई थी अपनी जान, इतिहास में दर्ज है 17 जून की तारीख
पत्रिका एक्सक्लूसिव
दिनेश शाक्य
इटावा. कांग्रेस सस्थापंक ए.ओ. ह्यूम को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 17 जून 1857 को उत्तर प्रदेश के इटावा में जंग-ए-आजादी के सिपाहियों से जान बचाने के लिये साड़ी पहनकर भागना पड़ा था। उस वक्त ए.ओ.हयूम इटावा के कलेक्टर हुआ करते थे। 'इटावा के हजार साल' और 'इतिहास के झरोखे में इटावा' नाम ऐतिहासिक पुस्तकों में ह्यूम के बारे में उल्लेख किया गया है। इनमें लिखा है कि इटावा के सैनिकों ने ह्यूम और उनके परिवार को मार डालने की योजना बनाई थी, जिसकी भनक लगते ही 17 जून 1857 को ह्यूम महिला के वेष में गुप्त ढंग से इटावा से निकल कर बढपुरा पहुंच गये और सात दिनों तक वहीं छिपे रहे।
क्रांतिकारियों ने इटावा में तैनात अंग्रेज अफसरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मई 1857 को मेरठ में हुई क्रांति की ज्वाला इटावा तक आ पहुंची थी। क्रांतिकारी आगरा की तरफ से लगातार इटावा की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। जसवंतनगर के बिलैया बटे स्थित मंदिर पर क्रांतिकारियों और अंग्रेज अफसरों के बीच जोरदार फायरिंग हुई। क्रांतिकारियों ने कलेक्टर ए ओ ह्यूम और ज्वाइंट मजिस्ट्रेट डैनियल को घेर लिया। गोलीबारी में डेनियल की मौत हो गई, ह्यूम किसी तरीके से जान बचाकर भाग निकले। इस घटना के बाद में ह्यूम को उनके भारतीय वफादारों ने इस बात की जानकारी दी कि फिलहाल स्थितियां अनुकूल नहीं है, इसलिए आज से इटावा के बजाय किसी और सुरक्षित स्थान पर रहा जाये। इसी लिहाज से एओ ह्यूम ने अपने और अपने अंग्रेज अफसरों के परिजनों को लेकर के बढपुरा होते हुए आगरा जाना मुनासिब समझा। क्रांतिकारियों के खतरे को देखते हुए एओ ह्यूम ने महिला का वेष धारण कर आगरा तक की यात्रा की और अपने परिवार के सभी सदस्यों को सुरक्षित ले जाकर के आगरा में शरण पाई।
इटावा चर्च का कराया निर्माण
ह्यूम ने इटावा में अग्रेंजों के लिये एक प्रार्थना स्थल चर्च का निर्माण कराया था। उसके पास ही इटावा क्लब की स्थापना इसलिये कराई ताकि, बाहर से आने वाले मेहमानों को रुकवाया जा सके। क्योंकि इससे पहले कोई दूसरा ऐसा स्थान नहीं था, जहां पर मेहमानों को रुकवाया जा सके। सिंतबर 1944 को हुई जोरदार बारिश में यह भवन धराशायी हो गया था, जिसे नंबवर 1946 मे पैतीस हजार रुपये खर्च करके पुननिर्मित कराया गया था।
अपने नाम की इमारतें बनवाईं
ह्यूम ने अपने नाम के अंग्रेजी शब्द के एचयूएमई के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया। 4 फरवरी 1856 को इटावा के कलेक्टर के रूप में ए.ओ.हयूम की तैनाती अंग्रेज सरकार की ओर से की गई। ह्यूम की एक अंग्रेज अफसर के तौर पर कलेक्टर के रूप में इटावा में पहली तैनाती थी।
ह्यूमगंज में बाजार खुलवाया
ह्यूम ने इटावा को एक बड़ा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम से ह्यूमगंज की स्थापना करके हाट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय में होमगंज के रूप में बड़ा व्यापारिक केंद्र बन गया है।
बालिका शिक्षा के लिए बनवाया स्कूल
ए.ओ.ह्यूम इटावा में अपने कार्यकाल के दौरान 1867 तक तैनात रहे। 16 जून 1856 को ह्यूम ने इटावा के लोगों की जनस्वास्थ्य सुविधाओं को मद्देनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया। स्थानीय लोगों की मदद से ह्यूम ने 32 स्कूलों का निर्माण कराया, जिसमें 5683 बालक-बालिका अध्ययनरत रहे। खास बात यह है कि उस वक्त बालिका शिक्षा का जोर न के बराबर रहा होगा, तभी तो सिर्फ 2 ही बालिका अध्ययन के लिये सामने आईं। ह्यूम ने अपने कार्यकाल के दौरान इटावा शहर में मैट्रिक शिक्षा के उत्थान से जिस स्कूल का निर्माण 17500 की रकम के जरिये कराया वो 22 जनवरी 1861 को बन कर तैयार हुआ और ह्यूम ने इसको नाम दिया ह्यूम एजूकेशन स्कूल। इस स्कूल के निर्माण की सबसे खास बात यह रही कि ह्यूम के प्रथम अक्षर एच शब्द के आकार का रूप दिया गया। आज इस स्कूल का संचालन इटावा की हिंदू एजूकेशलन सोसाइटी सनातन धर्म इंटर कालेज के रूप में कर रही है।
पक्षियों से रहा खासा प्रेम
एलन आक्टेवियन ह्यूम यानि ए.ओ.हयूम को पक्षियों से खासा प्रेम काफी रहा है। इटावा में अपनी तैनाती के दौरान अपने आवास पर ह्यूम ने 165 से अधिक चिड़ियों का संकलन करके रखा था। एक आवास की छत ढहने से सभी की मौत हो गई थी। इसके अलावा कलेक्टर आवास में ही बरगद का पेड़ पर 35 प्रजाति की चिड़िया हमेशा बनी रहती थी। साइवेरियन क्रेन को भी ह्यूम ने सबसे पहले इटावा के उत्तर सीमा पर बसे सोंज बैंडलैंड में देखे गये सारस क्रेन से भी लोगों को रूबर कराया था।
Updated on:
16 Jun 2019 02:26 pm
Published on:
16 Jun 2019 02:24 pm
बड़ी खबरें
View Allइटावा
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
