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इटावा के ये गांव कई देशों में हो चुके हैं मशहूर, आप जानते हैं क्यों खास हैं ये?

उत्तर प्रदेश के कई जिले अपने अलहदा उत्पादों के लिए जाने जाते हैं। इसमें कई महानगर भी शामिल हैं, लेकिन हम बात कर रहे हैं इटावा के कुछ गांवों की, जो बकरी पालन के लिए विदेशों तक मशहूर हो चुके हैं।

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famous goat farming village in Etawah

जमुनापारी बकरी

यूपी में कई जिले ऐसे हैं, जहां के अलग-अलग उत्पाद मशहूर हैं। इनमें से लखनऊ की चिकनकारी, कन्नौज का इत्र, मुरादाबाद के पीतल उत्पाद, अमरोहा के वाद्य यंत्र यानी ढोलक आदि उत्पाद प्रमुख हैं। इसके अलावा अन्य जिले भी अपनी-अपनी कला के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इटावा में कुछ गांव ऐसे हैं, जो बकरी पालन में विदेशों तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। जी हां, इन गांवों में पाली जाने वाली जमुनापारी बकरी की खासियत ही ऐसी है कि उसकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है। कीमत भी पांच लाख तक है। अब आप भी जानिए इस बकरी की खासियत।

इंडोनेशिया, मलेशिया समेत इन देशों में बढ़ रही मांग
इटावा की तहसील चकरनगर क्षेत्र में पैदा होने वाली जमुनापारी बकरी की इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश आदि देशों में सर्वाधिक मांग बढ़ी है। जमुनापारी बकरी सुंदरता के साथ मीट के लिए भी अच्छी मानी जाती है। यहां की जमुनापारी हंसी तोता परी बकरी की खूबसूरती का समूचा विश्व दीवाना है। विश्व में बढ़ती डिमांड के चलते भारत सरकार ने इसे विश्व प्रसिद्ध प्रजाति का दर्जा दिया है। इनकी कीमत भी एक से लेकर पांच लाख रुपये तक है।

जमुनापारी बकरी की ये खासियत जानते हैं आप ?
पशु चिकित्साधिकारी सहसों डॉ. राहुल कुमार बताते हैं कि जमुनापारी बकरी सिर्फ शुष्क और गर्म क्षेत्रों में आराम से रह सकती है। चकरनगर तहसील यमुना किनारे बसी है। इसलिए यहां बहुतायत इसका पालन किया जाता है। खूबसूरती के चलते विदेशी लोग इसे पालने के शौकीन हैं। साथ ही यह दुग्ध उत्पादन में भी मुफीद है। एक जमुनापारी बकरी डेढ़ से दो किलो दूध देती है। इस बकरी का दूध डेंगू सहित कई बीमारियों में प्रयोग किया जाता है। विदेशों में इसका मीट बहुत कीमती है। कद काठी ऊंची होने से इसका वजन भी अधिक होता है।

कीमत सुनकर आप भी चौंक जाएंगे, मालामाल हो रहे पशुपालक
चकरनगर तहसील के गांव टिटावली निवासी पशुपालक मनोज यादव कहते हैं "जमुना पारी बकरियों से एक साल में 15 से 20 लाख रुपये का मुनाफा हो जाता है। एक बकरी चार से पांच लाख रुपये तक बिकती है। उन्हें कई बार पशु प्रदर्शनी में सम्मानित भी किया गया है।" वहीं सिरसा के साहब सिंह यादव कहते हैं "जमुनापारी बकरी पालन से हमें 10 से 15 लाख रुपये का मुनाफा प्रति वर्ष होता है, लेकिन इसमें पूरे परिवार को मेहनत करनी पड़ती है। मुझे जमुनापारी बकरी को लेकर प्रदर्शनियों में सम्मानित भी किया गया है।"

इटावा के इन गांवों में पाली जाती हैं जमुनापारी बकरियां
इटावा की चकरनगर तहसील क्षेत्र के सहसों, नदा, मिटहटी, सिरसा, टिटावली, कोला, गढ़ैया, विंडबा कला, सोनेपुरा, प्रतापपुरा, जहारपुरा, जांगरा, नींमडांडा, फूटाताल, नगला पिलुआ, नगला महानंद, नगला चौप, जगतौली, वरचौली, बछेड़ी, बंसरी, पहलन, विडौरी आदि गांवों में जमुनापारी बकरी पाली जाती है। इस नस्ल की उत्पत्ति इटावा से हुई है। अब पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और पाकिस्तान में भी इनका पालन किया जाता है।

इन राज्यों के व्यापारी कर रहे निर्यात
मनोज और साहब सिंह बताते हैं "चकरनगर से जमुनापारी बकरियों को खरीदकर नागपुर, छिंदवाड़ा, केरला, लखनऊ, जोधपुर, मुंबई, महाराष्ट्र आदि के व्यापारी देश के अलावा अन्य देशों में निर्यात कर रहे हैं। उक्त व्यापारियों के आगरा व कानपुर जैसे शहरों में अपने निजी बकरी फार्म हाउस भी हैं। व्यापारी क्षेत्र के पशुपालकों से बकरी खरीदकर विदेशों में निर्यात करते हैं।"