
बातचीत से ही हो पाएगा आशंकाओं का निवारण
राजस्थान की स्वास्थ्य सेवाएं गड़बड़ाने के कगार पर पहुंच जाएं, इससे पहले ‘राइट टू हेल्थ विधेयक’ का विरोध कर रहे निजी अस्पतालों के संगठनों और सरकारी प्रतिनिधियों को बातचीत कर तमाम उलझनों को दूर कर लेना चाहिए। राज्य के चिकित्सा मंत्री ने फिर कहा है कि सरकार राइट टू हेल्थ विधेयक जरूर लाएगी और विधानसभा के चालू सत्र में ही इसे पेश किया जाएगा। उन्होंने विधेयक को उपयोगी बताते हुए इस पर विधानसभा की प्रवर समिति के सदस्यों के राजी होने की बात भी कही है। गौरतलब है कि शुरुआती विरोध होने पर विधेयक के मजमून का अध्ययन करने के लिए विधानसभा की प्रवर समिति गठित की गई थी। मुश्किल यह है कि सरकार के तमाम आश्वासनों के बावजूद निजी चिकित्सालय के संचालक विधेयक को लेकर आशंकित हैं।
क्षेत्रफल के लिहाज के राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। मिड सेंसस के अनुसार जुलाई 2022 तक प्रदेश की आबादी 8 करोड़ को पार कर गई है। असमान जनसंख्या घनत्व के चलते प्रदेश के हर नागरिक को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं 55 हजार चिकित्सकों के भरोसे चल रही हैं। इनमें सरकारी चिकित्सक करीब 15 हजार ही हैं। रूरल हेल्थ स्टैस्टिक्स 2021-22 के अनुसार राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सकों के 316, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के 2454 और चिकित्सा विशेषज्ञों के 1030 पद रिक्त चल रहे हैं। इस हालत में निजी अस्पताल फलफूल रहे हैं। राज्य में करीब पांच हजार निजी चिकित्सालय हैं।
निजी चिकित्सालयों के संचालकों को लग रहा है कि नए विधेयक से उन्हें आर्थिक नुकसान होगा। आपातकाल में मुफ्त इलाज करने पर बिल का भुगतान कितना, कब और कितनी देर में होगा? इलाज से इनकार करने पर शिकायत वेब पोर्टल पर की जा सकेगी। पोर्टल के संचालन को लेकर भी कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। इस तरह की आशंकाओं और सवालों पर सरकार और निजी चिकित्सा सेवा प्रदाताओं के बीच चर्चा होनी जरूरी है। सरकार चिरंजीवी योजना और राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) को निजी चिकित्सकालयों से जोड़ चुकी है। नए विधेयक पर भी बातचीत करके निज चिकित्सालयों को विश्वास में लिया जा सकता है। (अ.कै.)
Published on:
14 Feb 2023 02:13 pm
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