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Bhai Dooj 2021: कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भैयादूज पर भाई को तिलक लगाने का शुभ समय और इस दिन की पौराणिक कथा

- इस दिन को यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है।- द्वितीया 5 नवंबर से शुरु होकर 6 नवंबर तक रहेगी।

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कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम द्वितीया भी कहा जाता है। वहीं इस दिन भैयादूज मनाया जाता है। दरअसल दीपावली पर्व के पांचवे यानि आखिरी दिन भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक भैयादूज दिवाली के तीसरे दिन व गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य लक्ष्य भाई—बहन के पावन संबंध और प्रेम भव की स्थापना करना है।

हिंदू समाज में भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के दो त्यौहार आते हैं। एक रक्षाबंधन और दूसरा भैयादूज। इसमें बहन भाई की लंबी आयु की प्रार्थना करती है। भाई दूज का यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। वहीं इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं और भाइयों के स्वस्थ और दीर्घायु होने की मंगलकातना करते हुए, उन्हें तिलक लगाती हैं।

इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन बहनों को भाइयों को चावल खिलाना चाहिए। बहन चचेरी, ममेरी अथवा धर्म की, कोई भी हो सकती है।

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यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठकर भोजन करना भी शुभ माना जाता है। भाई भोजनादि के उपरांत बहन को उपहारस्वरूप वस्त्राभूषण आदि देते हैं।
इसी दिन सूर्य तनया यमुनाजी ने अपने भाई यमराज को भोजन कराया था। इसीलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन यमराज और यमुनाजी के पूजन का विशेष विधान है।

भाई दूज 2021 शुभ मुहूर्त (Bhai Dooj 2021 Shubh Muhurat)
ऐसे में इस बार भैयादूज का त्यौहार शनिवार 6 नंवबर को है। पंडित एके शुक्ला के अनुसार भाई दूज के त्यौहार को शुभ मुहूर्त में ही मनाना चाहिए, वहीं राहु काल (Rahu kaal) में भाई को तिलक करने से बचना चाहिए। ऐसे में भाई दूज की द्वितिया तिथि इस बार 5 नवंबर को 11:14 PM से लगेगी, जो 6 नवंबर को 07:44 PM तक रहेगी। ऐसे में इस दिन यानि 6 नवंबर 2021 को भाईयों को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त 01:10 PM से लेकर 03:21 PM तक रहेगा।

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भैयादूज की कथा
भगवान सूर्य नारायण की छाया नामक पत्नी से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज को बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि अपने इष्ट मित्रों सहित उनके घर आकर भोजन करें। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टाल देते थे।

मान्यता के अनुसार ऐसे में एक बार कार्तिक शुक्ल का दिन आया। तो यमुना ने फिर उसी दिन यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा-' मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर बुलाना नहीं चाहता।

बहन जिस सद्भाव से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना चाहिए।' यह सोचकर यमराज ने बहन के घर जाने का निर्णय कर लिया। बहन के घर आते समय यमराज ने बहन के घर जाने का निर्णय लिया। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्तकर दिया।

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यमराज को अपने घर आया देख यमुना की खुशी का ठिकाना न रहा। यमुना ने उसे स्नान कराकर पूजन करके अनेक व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आथित्य से प्रसन्न होकर यमराज ने बहन को वर मांगने को कहा।

इस पर यमुना ने कहा- ' भद्र! आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर आकर भोजन किया करें। मेरी तरह जो बहन अपने भाई का आदर-सत्कार करके टीका करें, उसे आपको भय न रहें। यमराज ने 'तथास्तु' कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह ली, तभी से इस पर्व की परंपरा बनी।

ऐसा माना जाता है कि जो भाई इस दिन यानि कार्तिक शुक्ल द्वितीया यानि भैयादूज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों का आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसलिए भैयादूज को यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।