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छठ सूर्योपासना का पर्व है, जिसे सूर्य षष्ठी को मनाया जाता है। यह पर्व परिवार में सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल प्रदान करने वाला माना जाता है। माना जाता है कि छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं, इसलिए लोग सूर्य की तरफ अर्घ्य दिखाते हैं और छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य की आराधना करते हैं। इस बार यह पर्व शुक्रवार, 28 अक्टूबर से शुरु हो रहा है।
मान्यता के अनुसार छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान के बाद संयम की अवधि के चार दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग रहता है। इस पूरी अवधि के समय वह शुद्ध भावना के साथ एक कंबल के साथ ही फर्श पर सोता है। यह भी माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार ने छठ पूजा शुरु कर दी, तो उन्हें और उनकी अगली पीढी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना होगा और इसे तभी छोडा जा सकता है, जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी हो।
इस व्रत को करने वाले भक्त छठ पर मिठाई, खीर, ठेकुआ और फल, कच्ची हल्दी की गांठ, घी से बना मीठी पूड़ी, मालपुआ, नारियल, चने के प्रसाद सहित अनेक तरह की वस्तु को छोटी बांस की टोकरी में सूर्य देव को प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं। प्रसाद की शुद्धता बनाए रखने के लिए इनहें बिना नमक, प्याज और लहसुन के तैयार किया जाता है।
छठ का यह त्यौहार 4 दिनों तक चलता है :
पहला दिन:- इस दिन जिसे नहाय खाय कहा जाता पर भक्त सुबह जल्दी गंगा के पवित्र जल में स्नान करने के पश्चात अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिए कुछ जल घऱ भी लेकर आते है। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई करते हैं। इस दौरान वे केवल एक वक्त का ही खाना लेते हैं, जिसे कद्दू-भात कहा जाता है, ये केवल मिट्टी के (चूल्हे) पर आम की लकडियों का प्रयोग करके तांबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।
दूसरा दिन :- इस दिन यानि पंचमी को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को धरती माता की पूजा के बाद सूर्यास्त के बाद अपना व्रत खोलते हैं। इस दिन ये पूजा में खीर, पूड़ी और फल मिठाई अर्पित करते हैं। और शाम को खाना खाने के बाद, व्रत करने वाले भक्त बिना पानी पियें अगले 36 घण्टे का उपवास रखते हैं।
तीसरा दिन:- इस दिन भक्त प्रमुख दिन नदी के किनारे घाट पर संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद पीले रंग का वस्त्र पहनते हैं। वहीं परिवार के अन्य सदस्य भी पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। छठ की रात कोसी पर 5 गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारम्परिक कार्यक्रम मनाया जाता है। ये 5 गन्ने पंच तत्वों जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को प्रर्दशित करते हैं, जिससे मानव शरीर का निर्माण होता है।
चौथे दिन :- इस दिन यानि छठ पूजा के अंतिम दिन की सुबह व्रत करने वाले भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्थात सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देते है। उसके बाद ही छठ का प्रसाद खाकर व्रत खोलते हैं।
Updated on:
28 Oct 2022 08:17 am
Published on:
27 Oct 2022 06:44 pm
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