
देवशयनी एकादशी : चौमासे का आरंभ, 12 जुलाई से नहीं होंगे शुभ मांगलिक कार्य
12 जुलाई 2019 दिन शुक्रवार को आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी तिथि है, इस दिन से जिसे चौमासे का आरंभ होगा और भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जायेगा। भगवान विष्णु चार मास के लिए निद्रा में रहते हैं इसलिए इस समय में विवाह समेत अनेक मांगलिक शुभ कार्य नहीं किये जाते। जानें इन चार माह तक क्या-क्या नहीं करना चाहिए और इसका महत्व।
चौमासे में ये शुभ कार्य न करें
देवशयनी एकदशी के बाद चौमासे में चार मास ऋषि-मुनि, तपस्वी, साधक आदि भ्रमण नहीं करते, वे एक ही स्थान पर रहकर जनजागरण का कार्य एवं तपस्या करते रहते हैं। इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है। क्योंकि इन चार महीनों में पृथ्वी के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। इन चार माह में विवाह, ग्रहप्रवेश, मुंडन जैसे अनेक शुभ कार्यों को करने पर विराम लग जाता है।
देवशयनी एकदशी का महत्व
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस साल 12 जुलाई दिन शुक्रवार को है देवशनी एकादशी। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी होता है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा के नाम से भी जाना जाता है। सभी उपवासों में देवशयनी एकादशी व्रत श्रेष्ठतम माना गया है।
देवशनी एकादशी व्रत के लाभ
इस दिन व्रत उपवास करने वाले लोगों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ सभी पापों का नाश भी हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। देवशनी एकादशी की रात्रि से भगवान विष्णु का शयन काल आरंभ हो जाता है, जिसे चातुर्मास या चौमासा भी कहा है। आषाढ़ी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं और इस दिन सारे शुभ मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
देवशनी एकादशी से चतुर्मास में इनका विशेष ध्यान रखें
1- चौमासे में मधुर स्वर के लिए गुड़ नहीं खाना चाहिए।
2- चतुर्मास में दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का त्याग करना चाहिए।
3- चौमासे में वंश वृद्धि के लिए नियमित गाय के दूध का सेवन करना चाहिए।
4- चतुर्मास में पलंग पर शयन नहीं करना चाहिए।
5- चतुर्मास में शहद, मूली, परवल और बैंगन नहीं खाना चाहिए।
6- चौमासे में किसी भाहरी व्यक्ति के द्वारा दिया गया दही-भात नहीं खाना चाहि।
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Published on:
10 Jul 2019 11:48 am
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