scriptdhanteras 2020: धनतेरस शुक्रवार को शुभ क्यों? साथ ही जानें धनतेरस की वह पौराणिक कथा, जब मां लक्ष्मी… | dhanteras 2020 on friday : 13 November 2020 is very special | Patrika News

dhanteras 2020: धनतेरस शुक्रवार को शुभ क्यों? साथ ही जानें धनतेरस की वह पौराणिक कथा, जब मां लक्ष्मी…

locationभोपालPublished: Nov 12, 2020 09:22:17 pm

14 नवंबर को दिवाली होने की वजह से लोग धनतेरस और नरक चतुर्दशी की तिथि को लेकर दुविधा में हैं…

dhanteras 2020 on friday : 13 November 2020 is very special

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पांच दिनों तक चलने वाला दीपावली का महापर्व इस इार यानि 2020 में भले ही तिथि के आधार पर गुरुवार से शुरु हो गया, लेकिन अधिकांश लोग इसे शुक्रवार को भी मनाएंगे। जिसक चलते इस बार यह महापर्व सिर्फ चार दिनों का ही होगा। वैसे तो हर बार धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली मनाने की परंपरा है, लेकिन इस बार तिथि के समय के कारण व 14 नवंबर को दिवाली होने की वजह से लोग धनतेरस और नरक चतुर्दशी की तिथि को लेकर दुविधा में हैं।

दरअसल इस साल कृष्ण त्रयोदशी 12 नवंबर की रात 9.30 पर शुरू होगी, जो 13 नवंबर को शाम 5:59 बजे तक रहेगी। ऐसे में पंडितों व जानकारों के अनुसार उदया तिथि और प्रदोष काल में होने की वजह से धनतेरस का त्योहार 13 नवंबर को शुक्रवार के दिन ही मनाना शुभ रहेगा।

वहीं 13 नवंबर की शाम 5:59 बजे से चतुर्थी तिथि लगने के बाद ये 14 नवंबर को दोपहर 2:20 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से 14 नवंबर को ही नरक चतुर्दशी का त्यौहार भी मनाया जाएगा। जो लोग नरक चतुर्दशी का व्रत करते हैं उन्हें इस बार धनतेरस के दिन यानि 13 नवंबर को ही व्रत रखना चाहिए, क्योंकि ये व्रत उसी दिन रखा जाता है, जिस समय से ये तिथि प्रारंभ होती है।

धनतेरस पर बर्तन बाजारों में खरीदारी करते हुए महिलाएं ..

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नरक चतुर्दशी के मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने अकाल मृत्यु से मुक्ति से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस वध किया था, तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन यम का दीपक जलाने की परंपरा है।

वहीं इसके बाद यानि चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर को दोपहर 2:20 मिनट तक रहेगी और उसके बाद अमावस्या तिथि शुरु हो जाएगी, जो 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी। यही वजह है कि इस साल 14 नवंबर को एक ही दिन चतुर्दशी और दिवाली दोनों मनाई जाएगी।

स्नान का शुभ मुहूर्त : Auspicious time for bathing on Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) के त्योहार को नरक चौदस और रुप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है, इसलिये कई लोग इस छोटी दिवाली भी कहते हैं। चतुर्दशी तिथि को सूर्योदय से पूर्व स्नान करने की परंपरा है। इस दिन स्नान करने का शुभ मुहूर्त सुबह 05:22:59 से 06:43:18 तक का है।

पौराणिक कथा mythology : जब मां लक्ष्मी ठहर गईं किसान के घर…
कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, इसके बारे में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है।

Arti of Mata Lakshmi

कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।

उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

Most easiest steps to get Blessings Of Mata Laxmi

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।

विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।

इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।

MUST READ : ऐसे जांचे असली सोना-चांदी

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धनतेरस पर खरीदें ये 5 पीली वस्तुएं : Buy these 5 yellow items on Dhanteras
धनतेरस से ही तीन दिन तक चलने वाला गोत्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है। आओ जानते हैं इस दिन खरीदे जाने वाली 5 खास पीली वस्तुएं ।

1. सोना खरीदना : इस दिन सोने या चांदी के आभूषण खरीदने की परंपरा भी है। सोना भी लक्ष्मी और बृहस्पति का प्रतीक है इसलिए सोना खरीदें। कुछ लोग सोने या चांदी के सिक्के खरीदते हैं।

2. बर्तन खरीदना : इस दिन पुराने बर्तनों को बदलकर यथाशक्ति ताम्बे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन खरीदते हैं। पीतल के बर्तन लक्ष्मी और बृहस्पति के प्रतीक हैं अत: इस दिन सोना नहीं खरीद पा रहे हैं तो पीतल के बर्तन जरूर खरीदें।

3. धनिया या गुड़ : इस दिन जहां ग्रामीण क्षेत्रों में धनिए के नए पीले बीज खरीदते हैं वहीं शहरी क्षेत्र में पूजा के लिए साबुत धनिया खरीदते हैं। इस दिन सूखे धनिया के बीज को पीसकर पीले गुड़ के साथ मिलकर एक मिश्रण बनाकर ‘नैवेद्य’ तैयार करते हैं।

4. नए वस्त्र खरीदना : इस दिन दीपावली पर पहनने के लिए पीले नए वस्त्र खरीदने की परंपरा भी है।

5. अन्य वस्तुएं : इसके अलावा इस दिन दीपावली पूजन के लिए लक्ष्मी-गणेश की पीले रंग की मूर्ति,पीली रंगोली, पीली मिट्टी के खिलौने खरीदे जाते हैं। इस दिन लक्ष्मी, गणेश, कुबेर, धन्वंतरि और यमराजजी की पूजा होती है। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं की पूजा भी होती है।

इन देवों की होती है पूजा : These Gods are worshiped on dhanteras
धनतेरस से ही तीन दिन तक चलने वाला गोत्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है। इस दिन पांच देवों की पूजा होती है।

1.धन्वंतरि पूजा : हिन्दू मान्यता अनुसार धन तेरस के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अमृत कलश के अमृत का पान करके देवता अमर हो गए थे। इसीलिए आयु और स्वस्थता की कामना हेतु धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है।

2.लक्ष्मी पूजा : इस दिन लक्ष्मी पूजा का भी महत्व है। श्रीसूक्त में वर्णन है कि लक्ष्मीजी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं।

3.कुबेर पूजा : धन के देवता कुबेर की इस दिन विशेष पूजा होती है। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं इसीलिए उनकी भी पूजा का प्रचलन है।

4.यम पूजा : धन तेरस के दिन यम पूजा का भी महत्व है। कहते हैं कि धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जहां दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है।

5. गणेश पूजा : गणेशजी की पूजा प्रत्येक मांगलिक कार्य और त्योहार में की जाती है क्योंकि वे प्रथम पूज्य हैं। सभी के साथ गणेश पूजा की जाना जरूरी होती है।

6. पशु पूजा : वहीं धनतेरस के दिन ग्रामीण क्षेत्र में मवेशियों को अच्छे से सजाकर उनकी पूजा करते हैं, क्योंकि ग्रामीणों के लिए पशु धन का सबसे ज्यादा महत्व होता है। दक्षिण भारत में लोग गायों को देवी लक्ष्मी के अवतार के रूप में मानते हैं, इसलिए वहां के लोग गाय का विशेष सम्मान और आदर करते हैं।

धन्वंतरि का पौराणिक मंत्र : Mythological mantra of Dhanvantari
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

धनतेरस, धन्वंतरि त्रयोदशी या धन त्रयोदशी दीपावली से पूर्व मनाया जाना महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरि, मृत्यु के अधिपति यम, वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है।

इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे मान्यता है कि लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति और यम को प्रसन्न करने के लिये कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है।

कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं।

धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे।

श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है।

‘धनमग्नि, धनम वायु, धनम सूर्यो धनम वसु:’

अर्थात प्रकृति ही लक्ष्मी है और प्रकृति की रक्षा करके मनुष्य स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु नि:स्वार्थ होकर पूरे समाज के लिए लक्ष्मी का सृजन कर सकता है।

श्री सूक्त में आगे यह भी लिखा गया है-‘न क्रोधो न मात्सर्यम न लोभो ना अशुभा मति:’
तात्पर्य यह कि जहां क्रोध और किसी के प्रति द्वेष की भावना होगी, वहां मन की शुभता में कमी आएगी, जिससे वास्तविक लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होगी। यानी किसी भी प्रकार की मानसिक विकृतियां लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधक हैं।
आचार्य धन्वंतरि के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है।

श्री सूक्त में वर्णन है कि, लक्ष्मी जी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं।
ऐसे करें धन्वंतरि पूजन, पढ़ें विधि Dhanteras 2020 Puja vidhi
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि का जन्म हुआ था,इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है। अत: कोई भी नया बर्तन अवश्य खरीदें, ऐसा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

इस दिन धन्वंतरि जी का पूजन Dhanvantari Pujan इस तरह करें –

नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें।

सायंकाल दीपक प्रज्ज्वलित कर घर, दुकान आदि को सुसज्जित करें।

मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं।

यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करें।

हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।

कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं।

शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गद्दी बिछाएं अथवा पुरानी गद्दी को ही साफ कर पुन: स्थापित करें।

धन्वंतरि जी की पूजा से तात्पर्य आसपास के वातावरण की सफाई से है। समूह में दीपक जलाने से तापमान बढ़ता है, जिससे सूक्ष्म कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और प्रकृति स्वरूपा साक्षात् लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त होता है।

भगवान धन्वंतरि की पूजा 2020 : जानें शुभ मुहूर्त Dhanteras 2020 Shubh Muhurat

इस बार यानि वर्ष 2020 में मत मतांतर से 12 और 13 नवंबर को धनतेरस है। जानिए शुभ मुहूर्त…

इस दिन गादी बिछाने व आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा करने का विधान है। गादी बिछाने व भगवान धन्वंतरि पूजन का मुहूर्त इस प्रकार है-

12 नवंबर की रात्रि 9:30 बजे के बाद से धनतेरस को लेकर खरीदारी की जा सकती है।12 नवंबर को खरीदारी के लिए शुभ मुहूर्त रात्रि 11:30 से 1:07 बजे और रात्रि 2:45 से अगले दिन सुबह 5:57 तक है….

13 नवंबर को सुबह 8.02 से 9.25 तक लाभ का चौघड़िया

13 नवंबर को सुबह 9.25 से 10.48 तक अमृत का चौघड़िया रहेगा

13 नवंबर को दोपहर 12.11 से 13.34 तक शुभ का चौघड़िया रहेगा और यह समय गादी बिछाने के लिए उत्तम है।


पूजन का समय : Timing of pujan

13 नवंबर को चंचल चौघड़िया में 16.19 (4 बजकर 19 मिनट) से 17.42 (5 बजकर 42 मिनट) तक का समय पूजन व दीप जलाने के लिए सबसे अच्छा है।

भगवान धन्वंतरि जी की आरती : Dhanvantari Arti in Hindi

जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।

तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।

भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।

तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।

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