
Guru purnima 2019 : धूनिवाले दादाजी माने जाते थे शिव जी का अवतार, गुरू पूर्णिमा पर यहां लगती है भक्तों की भीड़
16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा ( Guru purnima ) है और इस अवसर पर सभी अपने गुरूओं को नमन करते हैं व उनका आशीर्वाद लेते हैं। वहीं मध्यप्रदेश के खंडवा में एक ऐसा स्थान है जहां हर साल गुरु पूर्णिमा के अवसर पर भक्तों का तांता लगता है। यह स्थान खंडवा में धूनीवाले दादाजी ( dhuni vale dadaji ) के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार धूनिवाले दादा जी के द्वार जो भी आता है उसकी हर इच्छा जरूर पूरी होती है। दरअसल, धूनी वाले दादाजी भारत के बड़े संतों में माने जाते हैं। जब भी कोई सिद्ध संतों की बात करता है उनमें धूनी वाले दादाजी का नाम जरूर लिया जाता है। इनके कई चमत्कार और किस्से प्रसिद्ध हैं।
वैसे तो यहां भक्त दर्शन के लिए आते रहते हैं, लेकिन गुरुपूर्णिमा (guru purnima 2019 ) पर यहां अनोखा नजारा देखने को मिलता है। गुरूपूर्णिमा पर यहां तीन दिन का मेला लगता है। जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु इनके दर्शन के लिए खंडवा पहुंचते हैं। दादाजी के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है और ना ही किसी को ये जानकारी है की उनका जन्म कब और कहा हुआ, पर इतना जरूर बताया जाता है की धूनीवाले दादाजी के बारे में मां नर्मदा ने स्वयं कहा था की वे भोलेनाथ के अवतार हैं। उनके भक्तों का भी कहना है कि, धूनीवाले दादाजी भगवान शिव का अवतार थे।
दादाजी धाम आने वाले भक्तों को प्रसाद के रूप में टिक्कड़, बूंदी मिलती है। गुरुपूर्णिमा पर देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूरा शहर मेजबान बन जाता है और 200 से ज्यादा भंडारों में शाही हलवा सहित दाल-बाटी चूरमा के साथ-साथ सब्जी-पुरी मिलती है।
खंडवा में ली अंतिम समाधि
दादाजी ने 1930 में खंडवा में ही अंतिम समाधि ली। उनके भक्तों ने आज उनकी समाधि स्थल पर एक मंदिर का निर्माण किया है। 84 खंबों के मार्बल के मंदिर का निर्माण प्रस्तावित है। हर गुरुपूर्णिमा को यहां पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। दादाजी की जलाई हुई धूनी आज भी इस स्थान पर जल रही है।
दादाजी का जनकल्याण करने का तरीका बहुत ही अनूठा था। वे अपने अनुयायियों में से किसी-किसी के साथ बहुत बुरा सलूक किया करते थे। उनकी आलोचना करते थे साथ ही छड़ी से पिटाई भी लगाते थे। हालांकि उनके भक्त इसे एक सम्मान मानते थे क्योंकि दादाजी हर किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते थे। लेकिन, कुछ भाग्यशालियों के साथ ही वे ऐसा व्यवहार किया करते थे।
दादाजी को लेकर एक प्रचलित कथा
18वीं सदी में एक बड़े साधु गौरीशंकर महाराज अपनी टोली के साथ नर्मदा मैया की परिक्रमा किया करते थे। वह शिव के बड़ भक्त थे। उन्होंने जब नर्मदा परिक्रमा पूरी की तब मां नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने भगवान शिव के दर्शन की लालसा मां नर्मदा के सामने रखी। तब, मां नर्मदा ने कहा था कि तुम्हारी टोली में ही केशव नाम के युवा के रूप में भगवान शिव स्वयं मौजूद हैं। गौरीशंकर महाराज तुरंत ही दौड़े-दौड़े उनके पीछे भागे और केशव में उन्हें भगवान शिव का रूप दिखाई दिया। तभी से दादाजी की पहचान हुई और वे शिव के अवतार माने गए।
Updated on:
14 Jul 2019 01:40 pm
Published on:
14 Jul 2019 01:34 pm
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