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क्या आप जानते हैं गुरु पूर्णिमा व महर्षि वेदव्यास का संबंध! ये है महत्व

- शिष्यों द्वारा गुरुओं को नमन

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Deepesh Tiwari

Jul 03, 2023

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साल 2023 में आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि सोमवार, 3 जुलाई को है, ऐसे में इस दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। गुरु पूर्णिमा का सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास से विशेष नाता है, इसी के चलते इस दिन लोग गुरु पूजा के दौरान इनकी प्रतिमा या चित्र का उपयोग करते हैं। दरअसल वैदिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अऋारह पुराण आदि साहित्यों की रचना प्राचीन काल में महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई थी, ये ऋषि पराशर के पुत्र होने के साथ ही इनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा की तिथि को हुआ था।

सनातन धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक महर्षि वेदव्यास तीनों कालों के ज्ञाता होने के साथ ही इनके द्वारा अपनी दिव्य दृष्टि से यह देख लिया गया था कि धर्म के प्रति मानव की रुचि में कलियुग में गिरावट आ जाएगी।

इस गिरावट के चलते ही मनुष्य का ईश्वर के प्रति विश्वास कम हो जाएगा, ऐसे में वह कर्तव्य से विमुख होने के साथ ही अल्पायु भी हो जाएगा। जिसके कारण सम्पूर्ण वेद का अध्ययन नहीं कर पाएगा, इसी स्थिति को देखते हुए महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बांट दिया ताकि वेदों का अध्ययन अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति वाले व्यक्ति भी कर सकें।

व्यास जी ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की। वहीं इस तरह से उनके द्वारा वेदों का विभाजन किए जाने के कारण ही वे वेद व्यास के नाम से जाने गए। इन चारों वेदों का ज्ञान उन्होंने अपने प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को प्रदान किया।

जिसके बाद चारों वेदों को अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में महर्षि वेदव्यास जी के शिष्यों ने अपनी बुद्धि के अनुसार विभाजित कर दिया। महाभारत की रचना भी महर्षि व्यास के द्वारा ही की गई थी। इन्हीं सब स्थितियों के चलते महर्षि व्यास जी को आदि-गुरु गया।

जिसके फलस्वरूप गुरु पूर्णिमा के पर्व को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। ऐसे में इस दिन गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर हमारे द्वारा उनकी पूजा की जानी चाहिए।

महत्व : उनके प्रति आदर
शिष्यों द्वारा गुरुओं को नमन और धन्यवाद करने के लिए गुरु पूर्णिमा के पर्व को मनाया जाता है। हमेशा से ही गुरु अपने शिष्यों की भलाई के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर करते आ रहे हैं। आध्यात्मिक गुरु सदैव ही संसार में शिष्य और दुखी लोगों की सहायता करते रहेे हैं, जिसके अनेक उदाहरण आज भी हमारे समक्ष मौजूद हंै कारण ये है कि गुरुओं ने अपने ज्ञान से अनेक दुखी लोगों की दिक् कतों का हमेशा ही निवारण किया है। खास बात ये है कि गुरु पूर्णिमा का ये पर्व भारत के अलावा भूटान और नेपाल सहित कई अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

ऐसे करें अपने गुरु की पूजा
गुरु पूर्णिमा पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्यकर्मों के बाद साफ व शुद्ध वस्त्र पहने। जिसके बाद गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध कर वहां महर्षि व्यास जी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। इसके बाद उनके चित्र पर ताजे फूल व माला अर्पित करें और फिर अपने गुरु के पास जाएं। अपने गुरु के पास पहुंच कर उन्हें ऊँचे सुसज्जित आसन पर बैठाएं और फिर उन्हें भी फूलों की माला अर्पित करें। जिसके पश्चात उन्हें वस्त्र, फल, फूल का अर्पण करने के बाद सामथ्र्य के अनुसार उन्हें दक्षिणा चढाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

वहीं गुरु पूर्णिमा के संबंध में बनारस के पूजारी आचार्य शिवम का कहना है कि व्यक्ति ने जिससे शिक्षा ग्रहण की हो, पिता , बड़ा भाई , राजा , मामा, श्वसुर, नाना, दादा, ज्येष्ठ कोई बांधव , स्त्री वर्ग में माता, दादी , नानी, सास , मौसी, बुआ, बड़ी बहन कूर्म पुराण के मत के अनुसार यह सभी लोग गुरु तुल्य ही माने गए हैं।

ऐसे प्रश्न आता है की गुरु किसे नहीं बनाना चाहिए? तो कालिकापुराणश् ख्4, के मत के अनुसार इस प्रकार के व्यक्तियों को गुरु नही बनाना चाहिए -

अभिशप्तमपुत्रच्ञ सन्नद्धं कितवं तथा।
क्रियाहीनं कल्पाग्ड़ वामनं गुरुनिन्दकम्॥
सदा मत्सरसंयुक्तं गुरुंत्रेषु वर्जयेत।
गुरुर्मन्त्रस्य मूलं स्यात मूलशद्धौ सदा शुभम्॥
जो शापित हो कुमार्गी हो क्रिया हीन हो भगवान की वेदों की निंदा करता हो अहंकारी हो इत्यादि, इस प्रकार के व्यक्तियों को गुरु रूप में स्वीकार्य नहीं करना चाहिए,

गुरु की अवश्यकता क्यों है ?
आचार्य शिवम के अनुसार पहले ही हम ने बताया कि गुरु जो अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाए वही सद गुरु है, जैसे स्कूल में बिना शिक्षक के हमे किताबें पढनी नही आती , कई बार जिन्हें पढने आ भी जाए तो उनको प्रयोग करने का दृष्टीकोण नही प्राप्त होता और अध्यापक के थोड़े से सहयोग से हमे उन पुस्तकों के ज्ञानार्थ को समझ लेते हैं, इसी प्रकार एक सत गुरु के निर्देशन से अपने जीवन के चारों पुरुषार्थों धर्म , अर्थ, काम, मोक्ष, को प्राप्त कर लेते हैं, और अंत में इस भव सागर से पार हो जाते हैं।
आत्म उन्नति के लिए आत्म परिचय के लिए गुरु से ज्ञान और दृष्टि कोण प्राप्त करना बहुत जरूरी होता है ,और वही आप को प्रमोत्कर्ष तक ले जाने में सक्षम होता है श्रेष्ठ गुरु शिष्य का निरंतर कल्याण करता है।।