20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बिहार में इस जगह प्रकटे थे नृसिंह भगवान, यही हुआ था ‘होलिका’ दहन

प्रहलाद के बच जाने की खुशी में लोगों ने होलिका की राख एक-दूसरे को लगाई और तब से ही होली की शुरुआत हुई।

2 min read
Google source verification

image

Sunil Sharma

Feb 27, 2018

narsingh bhagwan

narsingh bhagwan and holi story

रंग-गुलाल के त्योहार होली से एक दिन पूर्व पाप और अधर्म का नाश करने के लिए जलाई जाने वाली ‘होलिका दहन’ (अगजा) के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि बिहार के पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ में ही असुर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका नारायण भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर जलती चिता पर बैठ गई थी जिसकी रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था।

आज भी जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में उस स्थान का अस्तित्व मौजूद है, जहां असुर हिरण्यकश्यप के अमरत्व का अहंकार उसके सिर चढक़र बोला और उसने अपने पुत्र एवं भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद की हत्या करने के लिए उसे अपनी बहन होलिका की गोद में देकर जलती चिता पर बैठा दिया। प्रहलाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया लेकिन होलिका जलकर राख हो गई। मान्यता है कि प्रहलाद के बच जाने की खुशी में लोगों ने होलिका की राख एक-दूसरे को लगाई और तब से ही होली की शुरुआत हुई।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप के सिकलीगढ़ स्थित किले में भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए एक खम्भे से भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार हुआ था। वह खम्भा (माणिक्य स्तम्भ) आज भी वहां मौजूद है। कहा जाता है कि इस स्तम्भ को कई बार तोडऩे का प्रयास किया गया। वह झुक तो गया लेकिन टूटा नहीं। नृसिंह अवतार से जुड़े खम्भे की कई प्रमाणिकताएं मौजूद हैं। इस खंभे की कुछ दूरी पर हिरन नामक नदी बहती है। उन्होंने बताया कि कुछ वर्षों पहले तक नृसिंह स्तम्भ के छेद में पत्थर डालने से वह हिरन नदी में पहुंच जाता था।

भीमेश्वर महादेव मंदिर में तपस्या करता था हिरण्यकश्यप
इसी स्थान पर भीमेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप यहीं बैठकर भगवान शिव की अराधना किया करता था। मान्यताओं के मुताबिक हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्यकच्छ बराह क्षेत्र का राजा था। यह क्षेत्र अब नेपाल में पड़ता है। माणिक्य स्तम्भ की देखरेख के लिए बनाए गए प्रहलाद स्तम्भ विकास ट्रस्ट के अध्यक्ष बद्री प्रसाद शाह बताते हैं कि यहां शुरू से ही साधुओं का जमावड़ा रहा है। उन्होंने बताया कि भागवत पुराण के सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय में माणिक्य स्तम्भ स्थल का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि इसी खम्भे से भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। इस स्थल की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है।

बताया जाता है कि जब होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद चिता से सकुशल वापस आ गए तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगा-लगाकर खुशियां मनाई थीं। तभी से होली का त्योहार मनाने की शुरुआत हुई। यहां आज भी होलिका दहन के समय करीब यहां 40 से 50 हजार लोग उपस्थित होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं। आज भी मिथिला क्षेत्र के लोग रंग की बजाए राख और मिट्टी से ही होली खेलते हैं, जो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है। यह क्षेत्र कई अन्य कारणों से भी प्रसिद्ध है।

महान संत महर्षि मेंहीदास का पैतृक निवास स्थान भी यहीं है। इस क्षेत्र में मुसहर जाति की बहुलता है। जनश्रुतियों के मुताबिक इस क्षेत्र के मुसहर प्रारम्भ से ही ईश्वर और साधुओं की सेवा करते रहे हैं। इसी वजह से इस क्षेत्र में मुसहर लोगों का उपनाम ‘ऋषिदेव’ होता है।