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भगवान शिव की पूजा में जरुरी हैं ये श्रृंगार, बिलकुल ना करें भूल

भगवान शिव की पूजा में जरुरी हैं ये श्रृंगार, बिलकुल ना करें भूल

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भोपाल

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Tanvi Sharma

Feb 13, 2020

 भगवान शिव की पूजा में जरुरी हैं ये श्रृंगार, बिलकुल ना करें भूल

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महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा कर अभिषेक किया जाता है और उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। महादेव की पूजा कर उनका श्रृंगार किया जाता है। भगवान की पूजा अगर सच्चे मन से की जाए तो भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। शिवरात्रि के दिन शिव जी का श्रृंगार भी किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है शिव जी के श्रृंगार में बहुत सी चीजों का ध्यान रखना चाहिये....

पढ़ें ये खबर- महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को चढ़ा दें ये एक चीज, मिल जाएगा सबकुछ

शिव जी का पहला श्रृंगार-

भगवान शिव का पहला श्रृंगार गंगा को माना जाता है। शिव जी के सिर पर गंगा जी विराजमान रहती हैं। बताया जाता है की जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिये गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाया गया था, तब पृथ्वी की क्षमता गंगा के आवेग को सहने में असमर्थ हो गई थी। इस अवस्था को देखकर भगवान शिव ने गंगा जी को अपनी जटाओं में समेट लिया और इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया की आवेग की अवस्था को दृढ़ संकल्प के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है।

शिव जी का दूसरा श्रृंगार-

भगवान शिव का दूसरा श्रृंगार मुकुट यानी की चंद्रमा है। चंद्रमा भगवान शिव का मुकुट है, चंद्रमा का एक नाम सोम भी है और इसे शांति का प्रतीक माना जाता है। लेकिन चंद्रमा के भगवान शिव पर मुकुट के रुप में विराजमान होने के पीछे का कारण है कि चंद्र आभआ, प्रज्जवल, धवल स्थितियां बनती है इसके होने से मन में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं।

शिव जी का तीसरा श्रृंगार त्रिशूल-

भगवान शिव का तीसरा श्रृंगार उनका त्रिशुल है। इसलिये भगवान शिव के पास हमेशा त्रिशुल होता है क्योंकि इस त्रिशुल के तीन शूल क्रमशः सत, रज और तम गुण से प्रभावित भूत, भविष्य और वर्तमान का द्योतक है। भगवान शिव के माध्यम से दुष्ट और राक्षसों का संहार करने वाला माना जाता है।

भगवान शिव का चौथा श्रृंगार भस्म-

शिव जी का चौथो श्रृंगार भस्म मानी जाती है, क्योंकि भस्म से ही नश्वरता का स्मरण होता है। वहीं वेद में रुद्र को अग्नि का प्रतीक माना जाता है और अग्नि का कार्य भस्म करना होता है। अतः भस्म को शिव जी का श्रृंगार माना जाता है।

भगवान शिव का पांचवां श्रृंगार नागदेवता-

भगवान शिव का पांचवा श्रृंगार है नागदेवता। शिव जी के गले में सर्प यानी नागदेवता हमेशा विराजमान रहते हैं और इन्हें शिव जी का प्रिय माना गया है। दूसरी तरफ सर्पों को तमोगुणी माना जाता है और संहारक वृत्ति वाला जीव भी माना जाता है। इसलिये भगवान शिव ने सर्प को धारण किया गया है कि तमोगुण उनके वश में हैं।

भगवान शिव का छठवां श्रृंगार रुद्राक्ष-

भगवान शिव का छठवां श्रृंगार रुद्राक्ष माना जाता है। रूद्राक्ष का उपयोग बहुत सी खास चीजों में भी की जाती है इसे गले में भी पहना जाता है। इसके अलावा आपको बता दें कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसूओं से हुई थी, इसलिये रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

भगवान शिव का सातवां श्रृंगार डमरू-

भगवान शिव का दसवां श्रृंगार डमरू माना जाता है। डमरू के श्रृंगार से संसार का पहला वाद्य यंत्र है। इसके स्वर से वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई है इसलिए इसे नाद ब्रह्म या स्वर ब्रह्म भी कहा गया है।