
12 Gangaur
देवेंद्र सिंह / जयपुर. राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति, राजसी परंपराओं और भव्य त्योहारों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां का हर पर्व एक अलग ही रंग लिए होता है, जिसमें गणगौर विशेष महत्व रखता है। होली के सोलहवें दिन मनाए जाने वाला यह उत्सव न केवल महिलाओं की आस्था से जुड़ा हुआ है, बल्कि इसे शाही अंदाज में मनाने की परंपरा भी रही है।
जयपुर की गणगौर सवारी अपने भव्य स्वरूप के लिए मशहूर रही है, लेकिन इसके साथ निकलने वाली 12 गणगौरों की सवारी अब इतिहास का हिस्सा बन चुकी है। एक समय था जब यह सवारी पूरे शाही ठाट-बाट से त्रिपोलिया गेट बाहर से जनानी ढ्योढ़ी से निकलने वाली शाही गणगौर की शोभायात्रा में शामिल होती थी, लेकिन बीते कुछ सालों से यह परंपरा ठहर गई है।
जयपुर के जौहरी बाजार में नमकीन वालों की गली में स्थित मंदिर में 12 गणगौर माता विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ चार गण, चार गौर और एक ईसरजी प्रतिष्ठित हैं। इन 10 प्रतिमाओं को जयपुर के ही कुशल मूर्तिकारों ने काष्ठ से तैयार किया था।
करीब 155 साल से ज्यादा पुरानी यह परंपरा 15 साल पहले तक पूरी भव्यता से निभाई जाती रही। मंदिर के सामने कोने पर पान की दुकान लगाने वाले गोविंद शर्मा बताते है कि 2011 में पूर्व महाराजा भवानीसिंह के निधन के बाद से 12 गणगौर की सवारी निकलना बंद हो गई।
एक समय था जब 12 गणगौर की सवारी पूरी शाही भव्यता से निकाली जाती थी। गणगौर माता को पारंपरिक पोशाक पहनाने के बाद चांदी की पायजेब और रत्नों से जड़े स्वर्ण आभूषण धारण कराए जाते थे। चारदीवारी क्षेत्र के प्रतिष्ठित सेठाणा परिवार की बहुएं स्वयं गौर माता का शृंगार करती थीं। चारों गणगौरों को एक समान आभूषणों से अलंकृत किया जाता था, जिससे उनका सौंदर्य देखते ही बनता था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब 15 साल पहले मंदिर से रिद्धि-सिद्धि और गणेशजी की पीतल की मूर्तियां चोरी हो गईं। इन मूर्तियों पर सोने की पॉलिश की गई थी। तब से परिवार की पूर्णता के लिए इनकी तस्वीरें लगाकर पूजा की जा रही है।
मंदिर पुजारी पं. घनश्याम शर्मा बताते हैं कि ईसर-गणगौर परिवार की ये प्रतिमाएं करीब 500 किलो वजनी हैं। पहले सवारी के दौरान इनकी पालकी को 8 कहार उठाकर चलते थे। दो दिन की सवारी के लिए गौर सेवकों की दिहाड़ी, गणवेश, बैंड-बाजे, आभूषण, पोशाक और प्रसाद सहित कई प्रकार के खर्चे होते थे। पहले स्थानीय निवासी इन खर्चों को वहन करने में सहयोग करते थे, लेकिन अब यहां के अधिकांश रहवासी बदल चुके हैं। इस कारण 2011 के बाद से परंपरा का निर्वहन नहीं हो रहा है।
पुजारी शर्मा कहते हैं कि इस क्षेत्र के रहवासियों का इस सवारी से बड़ा लगाव था। लोगों को सालभर इसका इंतजार रहता था। यदि सरकार गणगौर माता की सवारी निकालने में सहयोग करे, तो यह भव्य परंपरा फिर से जीवंत हो सकती है।
स्थानीय निवासी राजकुमार सोनी बताते हैं कि गणगौर पर राज दरबार से सवारी के लिए बुलावा आता था। मंदिर से बड़े ही शान-ओ-शौकत से सवारी निकलती थी। मंदिर के कारण ही इस मार्ग का नाम "12 गणगौर का रास्ता" पड़ा। आज भी लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर गणगौर माता के दरबार में आते हैं, लेकिन वर्षों से सवारी नहीं निकलने से यह प्राचीन परंपरा विलुप्ति के कगार पर है। उनका कहना है कि इतना ही नहीं, कुछ लोगों ने मंदिर की भूमि पर अतिक्रमण भी कर लिया है, जिससे श्रद्धालुओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
जयपुर की शाही गणगौर सवारी आज भी अपने भव्य स्वरूप में निकलती है, लेकिन 12 गणगौरों की यह ऐतिहासिक परंपरा अब गुमनामी के अंधेरे में है। क्या आने वाले समय में इस विरासत को फिर से संजोया जाएगा? यह तो समय ही बताएगा, लेकिन श्रद्धालु आज भी इसी आस में हैं कि एक दिन यह भव्य सवारी फिर से निकलेगी और अपनी शाही परंपरा को पुनर्जीवित करेगी।
Updated on:
31 Mar 2025 07:55 pm
Published on:
31 Mar 2025 03:19 pm
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