लोहड़ी उत्सव 2020 : इस दिन ऐसे मनाएं लोहड़ी पर्व
इसलिए मनाया जाता है पोंगल का त्यौहार
देश में मनाये जाने वाले अधिकांश पर्वों की तरह ही पोंगल भी एक कृषि, खेती से जुड़ा हुआ त्यौहार है। पोंगल का सीधा संबंध खेती-बारी व ऋतुओं से है और ऋतुओं का संबंध भगवान सूर्य नारायण से हैं। इसलिए पोंगल पर्व वाले दिन भगवान सूर्य की विशेष विधि विधान से पूजा की जाती है। सूर्य देव से जो अन्नजल प्राप्त जमीन के माध्यम से प्राप्त होता है उसी का आभार व्यक्त करने के लिए पोंगल का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव को विशेष भोग लगाया जाता है जिसे पोंगल कहा जाता है।
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पोंगल त्यौहार वाले दिन सदियों से चली आ रही परंपरा और रिवाजों के अनुसार तमिलनाडु राज्य के लोग दूध से भरे एक बरतन को ईख, हल्दी और अदरक के पत्तों को धागे से सिलकर बांधते हैं और उसे प्रज्वलित अग्नि में गर्म करते हैं और उसमें चावल डालकर खीर बनाते हैं, (जो पोंगल कहलाता है) और फिर उसी का भोग सूर्यदेव लगाया जाता है। दक्षिण भारत में पोंगल का विशेष महत्व है, इस दिन से तमिल कैलेण्डर के महीने की पहली तारीख का शुभारम्भ होता है, इस प्रकार पोंगल एक तरह से नववर्ष के आरम्भ का प्रतीक भी है। पोंगल पर्व का 300 वर्ष ईसापूर्व में लिखित संगम साहित्य के ग्रंथों में प्राप्त होता है। तब इसे द्रविण शस्य उत्सव कहा जाता था।
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चार दिनों तक मनाया जाता है पोंगल पर्व
1- पहले दिन घरों की साफ-सफाई की जाती है और सफाई से निकले पुराने सामानों से ‘भोगी’ जलाई जाती है।
2- दूसरे दिन लोग अपने-अपने घरों में मीठे पकवान चकरई पोंगल बनाते हैं, जिसका भोग सूर्य देवता लगया जाता है, इस दिन चावल के आटे से सूर्य की आकृति भी बनाई जाती है।
3- तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है, जिसमें जीविकोपार्जन में सहायक पशुओं के प्रति आभार जताया जाता है और गाय-बैलों सजाया भी जाता है, महिलाएं पक्षियों को रंगे चावल खिलाकर अपने भाई के कुशल-क्षेम और कल्याण की कामना करती है।
4- चौथे दिन कन्नुम पोंगल के साथ होता है, जब लोग अपने नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने उनके घर जाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामना सन्देश देते हैं, और सामूहिक भोज, भूमि दान, बैलों की दौड़ (जल्लिकट्टू) आदि किये आयोजन भी करते हैं।
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