व्रत विधि
पंडित शुक्ला के अनुसार इसके तहत सप्त ऋषियों की मूर्ति या चित्र को एक चौकी पर रखें, वहीं यह चित्र चौकी पर भी कुमकुम से बना सकते हैं। इसके पश्चात सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करें। और फिर सप्त ऋषियों का पूजन करने के बाद ऋषि पंचमी की कथा सुनें।
सप्तऋषियों के नामों का उच्चारण अर्घ्य देते दौरान मंत्र से करना चाहिए-
‘कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥’
ऋषि पंचमी का महत्व
हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी को मुख्य रूप से व्रत के रूप में जाना जाता है। यह दिन भारतीय ऋषियों के सम्मान के तहत मनाया जाता है। ऋषि पंचमी पर सप्तऋषि के रूप में सम्मानित 7 ऋषियों की पूजा की जाती है, जिनमें वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज शामिल हैं।
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ऋषि पंचमी की पूजन विधि
ऋषि पंचमी के दिन महिलाओं को प्रातः काल उठकर स्नानादि के पश्चात साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए। इस दिन पूरे घर को पवित्र करने के लिए गाय के गोबर या गंगाजल का उपयोग करना चाहिए। इसके बाद सप्तऋषियों की प्रतिमा का निर्माण करना चाहिए।
वहीं प्रतिमा की स्थापना के बाद कलश की स्थापना करके उपवास का संकल्प लेते हुए सप्तऋषियों का पूजन हल्दी, चंदन, पुष्प, अक्षत आदि से करना चाहिए।
पूजन के दौरान ‘कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
इसके बाद सप्तऋषियों की कथा सुननी चाहिए और फिर कथा के पश्चात प्रसाद बांटना चाहिए।
इस दिन व्रतधारी स्त्रियों को जमीन में बोए हुए किसी भी अनाज को ग्रहण नहीं करना चाहिए बल्कि मोरधन या पसई धान के चावल का सेवन करना चाहिए।
वहीं स्त्री को राजस्वला स्थिति के समाप्त होने के पश्चात व्रत का उद्यापन भी करना चाहिए। उद्यापन के दिन सात ब्रह्माणों को भोजन कराकर उन्हें दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
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ऋषि पंचमी व्रत कथा
भविष्यपुराण की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में विदर्भ देश में एक उत्तक नाम ब्राह्मण अपनी पत्नी सुशीला के साथ रहता था, सुशीला पतिव्रता स्त्री थी। उत्तक के दो बच्चे जिनमें एक पुत्र और पुत्री थे। पुत्री के विवाह योग्य होने पर उत्तक ने उसका विवाह एक योग्य वर के साथ दिया, लेकिन पुत्री के पति की कुछ दिनों बाद अकाल मृत्यु हो गई। जिसके बाद उत्तक की पुत्री मायके वापस लौट आई।
ऐसे में एक दिन जब विधवा पुत्री अकेले सो रही थी, तभी सुशीला यानि उत्तक की पत्नी ने देखा कि बेटी के शरीर में कीड़े पैदा हो गए। अपनी बेटी को इस हालत में देख सुशीला काफी दुखी हुई। और पुत्री को अपने पति के पास लाकर बोली कि हे प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की ऐसी गति कैसे हुई?
इस पर उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाया और पुर्वजन्म के बारे में देखा कि उनकी पुत्री पहले भी ब्राह्मण की ही बेटी थी, लेकिन उस जन्म में उसने राजस्वला के दौरान पूजा के बर्तन छू लिए थे और इससे मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था। इसी कारण से इस जन्म में उसके शरीर में कीड़े पड़े। फिर आपने पिता उत्तक के कहने पर विधवा पुत्री ने इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पंचमी का व्रत किया और उसे सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई।