ऊँ सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
देवताओं के सेनापति भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ जी की माता होने के कारण ही माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई है। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती है, इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है जिनका वाहन सिंह है।
शारदीय नवरात्रि में पांचवें दिन माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती है और इसी मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वतः ही सुलभ हो जाते हैं। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वतः हो जाती है। जिनको संतान नहीं होती अगर वे इस दिन माता स्कंद की पूजा आराधना करते हैं, तो माता की कृपा से उनकी कामना पूरी हो जाती है।
स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनकी उपासना करने वाले साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होने लगती है। पांचवें दिन माता के इस मंत्र का जप करना चाहिए।
मंत्र
ऊं या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात- हे जगतमाता माँ आप सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में पूजा जाने वाली अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माता, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें मैं आपकी शरण में हूं।
पूजा अर्चना एवं मंत्र जप करने के बाद स्कंदमाता की इस आरती का श्रद्धापूर्वक गायन करें-
।। स्कंदमाता की आरती ।।
जय तेरी हो स्कंद माता।
पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी।
जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहू मैं।
हरदम तुझे ध्याता रहू मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा।
मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाडो पर है डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मंदिर में तेरे नजारे।
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इंद्र आदि देवता मिल सारे।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।
तू ही खंडा हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी।
भक्त की आस पुजाने आयी॥
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