
Who should give food to the ancestor's share in Shraddhas
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक पितृ तर्पण किया जाता है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति इन सोलह दिनों में अपने पितरों की मृत्यु तिथि के मुताबिक तर्पण करता है। उसे पितरों का आशीर्वाद मिलता है। ऐसे व्यक्ति से उसके पितृ प्रसन्न होकर उसके जीवन की सभी अड़चनों को दूर करते हैं।
16 दिवसीय पितृपक्ष, श्राद्ध पर्व, श्राद्ध महालय आरंभ हो गए हैं, जो 17 सितंबर 2020 तक चलेंगे। इन 16 दिनों में पूर्वजों को स्मरण कर उनके लिए तर्पण किया जाता है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार श्राद्ध वाले दिन ब्राह्मण भोजन से पूर्व पूर्वजों के हिस्से का भोजन कौआ और मछली को देना शुभ माना जाता है।
यदि कौआ और मछली सरलता से न मिल सके तो सिर्फ गाय को ही पूर्वजों के हिस्से का भोजन दे सकते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौआ और मछली का जितना महत्व है, उतना ही गाय का भी है।
श्राद्ध के दिन तर्पण के बाद पूर्वजों के भाग का भोज कौआ, मछली, गाय, कन्या, कुत्ता और भिक्षुक को दे सकते हैं। लेकिन कौआ, मछली और गाय का विशेष महत्व है। कौआ और मछली न मिलने पर गाय को भोजन दिया जा सकता है।
17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या रहेगी। यह अमावस्या पितरों के लिए मोक्षदायनी अमावस्या मानी जाती है। पितृपक्ष में पूर्वजों की शांति के लिए आह्वान किया जाता है। उनसे शुभाशीष की कामना की जाती है। सुबह स्नान कर नदी, तालाब या घर में किसी बर्तन में काली तिल्ली, दूब, जौ आदि रखकर जल से तर्पण करें। इस दौरान पहले देवतर्पण, इसके बाद ऋषि तर्पण और पितृ तर्पण करें। वहीं इस बार अधिकमास के चलते 18 अक्टूबर से घटस्थापना के साथ नवरात्र पर्व प्रारंभ होगा।
पितृ पक्ष का महत्व : Importance ( Mahatva/ / Significance ) of Pitru Paksha
हिन्दू धर्म के अनुसार साल में एक बार मृत्यु के देवता यमराज सभी आत्माओं को पृथ्वी लोक पर भेजते हैं। इस समय यह सभी आत्माएं अपने परिवारजनों से अपना तर्पण लेने के लिए धरती पर आती हैं। ऐसे में जो व्यक्ति अपने पितरों का श्रद्धा से तर्पण नहीं करता है। उसके पितृ उससे नाराज हो जाते हैं।
इसलिए पितृ पक्ष के दौरान पितृ तर्पण जरूरत करना चाहिए। पितृ पक्ष में पितरों के लिए श्रद्धा से तर्पण करने से जहां पितृों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, वहीं परिवार के सदस्यों की तरक्की का रास्ता खुलता है। साथ ही पितृ दोष का भी निवारण होता है। कहते हैं कि जिस घर में पितृ दोष लग जाता है उस घर में लड़के पैदा नहीं होते हैं, न ही उस घर में पेड़-पौधे उगते हैं और न ही कोई मांगलिक कार्य हो पाते हैं।
पितृ पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक है। कहते हैं इस दिन भूले-बिसरे सभी पितरों के लिए तर्पण किया जाना चाहिए। जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि नहीं पता होती है उन लोगों को भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए। सनातन धर्म में कहा जाता है कि तर्पण एक बहुत जरूरी क्रिया है जिससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध विधि...
पितृपक्ष में पितृतर्पण एवं श्राद्ध आदि करने का विधान यह है कि सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें- “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।” इसके बाद पितरों का आह्वान इस मंत्र से करना चाहिए।
मंत्र- “ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:। आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।”
इसके बाद पितरों को तीन अंजलि जल अवश्य दें- “ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।” अथवा “मम (अमुक) गोत्र अस्मत पिता-उनका नाम- वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।” जल देते समय इस मंत्र को जरूर पढ़ें।
Updated on:
04 Sept 2020 12:12 pm
Published on:
04 Sept 2020 12:03 pm
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