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हलवाई के बेटे का कमाल,सिर्फ इतने समय में इस बैंक को बना डाला देश का 8वां सबसे बड़ा बैंक

सफलता सिर्फ उन्हीं के कदम चूमती है जो मेहनत करना जानते हैं। अगर आपके पास हुनर और मेहनत करने का जज्बा है तो आपकों सफल बनने से कोई नहीं रोक सकता हैं।

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हलवाई के बेटे ने कर दिया कमाल सिर्फ 5 महीनों में ही इस बैंक को बना डाला देश का 8वां सबसे बड़ा बैंक

नई दिल्ली। सफलता सिर्फ उन्हीं के कदम चूमती है जो मेहनत करना जानते हैं। अगर आपके पास हुनर और मेहनत करने का जज्बा है तो आपकों सफल बनने से कोई नहीं रोक सकता हैं। ऐसा ही कुछ चंद्रशेखर घोष ने भी करके दिखाया हैं। चंद्रशेखर घोष ने अपने मेहनत और हौसले के दम पर सिर्फ पांच महीनों में बंधन बैंक को देश का आठवां सबसे बड़ा बैंक बना दिया हैं।

पांच महीनों में देश का आठवां सबसे बड़ा बैंक बना बंधन
कुछ महीनों पहले तक तो शायद किसी ने बंधन बैंक का नाम तक नहीं सुना होगा। लेकिन आज बंधन बैंक देश के सबसे बड़े बैंकों कि लिस्ट में सुमार हैं। 5 महीने के अंदर बंधन बैंक का शेयर 87 पर्सेंट तक बढ़ चुका है। इसका आईपीओ 375 रुपये पर आया था। इस तेजी की वजह से बंधन बैंक का मार्केट कैपिटलाइजेशन यस बैंक के करीब पहुंच गया है, जिसकी लोन बुक उससे 6 गुना और कुल इनकम साढ़े चार गुना अधिक है। शेयर प्राइस में तेजी की वजह से बंधन बैंक प्राइस टु बुक वैल्यू रेशियो के आधार पर देश के 10 सबसे महंगे बैंकों में शामिल हो गया है। पिछले शुक्रवार को बंधन बैंक का मार्केट कैप 83,787 करोड़ रुपये था।बता दें की वित्त वर्ष 2018 में बंधन बैंक की कमाई कुल 5,508 करोड़ रुपए थी, और उसकी कुल लोन बुक 32,339 करोड़ रुपए की थी।

एक छोटी सी मिठाई की दुकान से होता था गुजारा
बंधन बैंक को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले चंद्रशेखर घोष त्रिपुरा के अगरतला में एक छोटे से घर में रहते थे। उनके पिता वहीं पर एक छोटी सी मिठाई की दुकान चलाते थे। घोष का परिवार काफी बड़ा था और परिवार की इनकम काफी छोटी। ऐसे में घर चलाना काफी मुश्किल काम था। घोष के सामने कई मुश्किले आई लेकिन घोष ने हार नहीं मानी और सबका सामना करते हुए अपनी पढ़ाई ढाका विश्वविद्यालय से पूरी की। घोष परिवार मूल रूप से बांग्लादेश का ही है और आजादी के समय वे शरणार्थी बनकर त्रिपुरा में आ गए थे। ढाका में अपनी पढ़ाई पूरी करने बाद उन्होंने पहला काम भी वहीं शुरू किया।


घोष ने नहीं मानी हार
समाज में महिलाओं की खराब स्थिति को देखते हुए घोष ने महिलाओं को लोन देने के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनी बनाई। घोष की आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं थी। ऐसे में घोष के लिए नौकरी छोड़कर खुद की कंपनी खोलना आसान काम नहीं था।लेकिन घोष को खुद पर यकीन था और इसी यकीन पर उन्होंने बंधन नाम से एक स्वयंसेवी संस्था शुरू की। 2009 में घोष ने बंधन को रिजर्व बैंक द्वारा NBFC यानी नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड करवा लिया। उन्होंने लगभग 80 लाख महिलाओं को काम देकर उनकी जिंदगी बदल दी।